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मंदिरों का धन भगवान का, सरकार का नहीं — उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय : डॉ. विवेकानंद मिश्र

मंदिरों का धन भगवान का, सरकार का नहीं — उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय : डॉ. विवेकानंद मिश्र

  • भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा एवं कौटिल्य मंच की आभासी बैठक में धर्म और न्याय के संगम पर विचार

पटना, 21 अक्टूबर।
भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण के इस युग में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का निर्णय संपूर्ण राष्ट्र के लिए धर्म और न्याय का दीपस्तंभ बनकर उदित हुआ है। माननीय न्यायमूर्ति विवेक ठाकुर एवं न्यायमूर्ति राकेश कंठला की खंडपीठ ने यह स्पष्ट कहा कि “मंदिरों में अर्पित धन देवता का है, शासन का नहीं।” यह निर्णय देवालयों की निधि को पुनः उसके मूल उद्देश्य — देवकार्य और लोककल्याण — के पथ पर स्थापित करता है।

इसी विषय पर भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा एवं कौटिल्य मंच की एक विशेष आभासी बैठक राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. विवेकानंद मिश्र की अध्यक्षता में संपन्न हुई। बैठक में देशभर से विद्वानों, संतों, समाजसेवियों, चिकित्सकों और अधिवक्ताओं ने सहभागिता की तथा इस निर्णय का सर्वसम्मति से स्वागत किया।

डॉ. विवेकानंद मिश्र ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि —

“यह निर्णय भारतीय संस्कृति की आत्मा को पुनः जागृत करने वाला है। मंदिर केवल ईंट-पत्थर का भवन नहीं, बल्कि समाज की चेतना का केन्द्र है। देवालयों की निधि का उपयोग वेद, उपनिषद, योग, गुरुकुल, गौशाला, आयुर्वेद और समाजसेवा के कार्यों में होना चाहिए, न कि शासन की योजनाओं में।”

उन्होंने यह भी कहा कि अब समय है जब देवधन से संस्कृत विद्यापीठों, धर्मशिक्षा केन्द्रों और गुरुकुलों की स्थापना की जाए, जिससे नई पीढ़ी आत्मविज्ञान और आधुनिक विज्ञान दोनों का संतुलित ज्ञान प्राप्त कर सके।

आचार्य सच्चिदानंद मिश्र (नैकी ग्राम) ने कहा कि यह आदेश धर्ममर्यादा का विधान है — “देवालय का धन देवकार्य में और शासन का धन शासनकार्य में ही लगना चाहिए।” जब मंदिरों की निधि से यज्ञशालाएँ, गौशालाएँ और धर्मशिक्षा केन्द्र सक्रिय होंगे, तभी भारत अपने प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त करेगा।

आचार्य राधामोहन मिश्र ने इसे “भारत के सांस्कृतिक संविधान का पुनर्पाठ” बताया, जबकि विष्णुपद मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष शंभू बाबू विट्ठल एवं सचिव गजाधर लाल पाठक ने कहा कि देवधन का उचित उपयोग सनातन धर्म, नीति और सेवा के मार्ग को पुनः सशक्त करेगा।

संरक्षक शिवचरण डालमिया ने कहा — “मंदिर केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि लोककल्याण का माध्यम है।”
वहीं प्रसिद्ध समाजसेवी उषा डालमिया ने कहा कि जब देवधन से जनहित के कार्य होंगे, तभी समाज में सत्य, नीति और सदाचार की स्थापना होगी।

बैठक में स्वामी सत्यानंद गिरी, स्वामी व्यंकटेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज, आचार्य पं. भरत भूषण पाण्डेय, डॉ. बी.एन. पांडे, डॉ. विनोद कुमार सिंह, डॉ. ज्ञानेश भारद्वाज, ज्योति मिश्रा, स्वामी सुमन गिरि, पं. अजय मिश्र, हरिनारायण त्रिपाठी, शंभू गुर्दा, अमरनाथ पांडेय, आचार्य अरुण पाठक, डॉ. दिनेश सिंह, डॉ. रविन्द्र कुमार, पंडित विनयकांत मिश्र, आचार्य अभय मिश्र, डॉ. अजय कुमार मिश्र, रंजीत पाठक, नीलम कुमारी, पुष्पा गुप्ता सहित अनेक विद्वान एवं समाजसेवी उपस्थित थे।

बैठक के समापन पर सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का यह आदेश पूरे देश में लागू किया जाए, ताकि मंदिरों की निधि का उपयोग केवल देवकार्य, धर्मशिक्षा, संस्कार निर्माण और समाज सेवा के लिए हो।

अंत में डॉ. विवेकानंद मिश्र ने कहा —

“देवधन देवकार्य में ही शोभा पाता है, क्योंकि वही भारत की आत्मा का धर्म है। जब देवालय पुनः जनकल्याण के केन्द्र बनेंगे, तब भारत पुनः विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित होगा।”

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