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लाठी में तेल पिला के - खूब भईल खेल

लाठी में तेल पिला के - खूब भईल खेल

रचना ---डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"

जनता दल की राजनीति बा बड़ दागदार,
लालू जी के लाल से, जरा रही होशियार!
पशुअन के चारा तक खा गइल रे भाई !
गउ माता के श्राप से सजा ताउमर पाई।


चारा के नाम पर पैसा, खजाना से उड़ल,
नीतीश के भाग से, लालू जेल में सड़ल।
गाय, बकरी, भैंसवा न कोई मोटा भइल,
पर लालू के लाल के पेट जरूर फूला गइल।


अब सुनS नया किस्सा, अलकतरा के खेल,
सड़कवा बनल ना, खा गइल अलकतरा तेल।
खजाना के पैसा के नेता, कईलक हेरा-फेरी,
सड़क के नाम पर, गीला भइले जेब के डोरी ।


अलकतरा के ठेका, सड़क बनल बा मजेदार,
धुरी में मिल गइल सड़क, चल गइल सरकार!
जनता संग विपक्ष बोले,“सड़क कहाँ बा भाई?
कागज़ पर बन गइल, देख लालू की चतुराई !”


अब अपराध बढ़ल, बहिन-बेटी रोअत बानी,
न्याय के आस में, आँखें लोर सुखावत बानी।
नेता मंच से बोले, “हम कड़ा कदम उठाइब”,
पर पीछे से सब साक्ष्य मिटाके, हँसी उड़ाइब।


अब सुनS स्याह कहानी, चंपा विश्वास के नाम,
सत्ता के साए में जली, एक ब्याहता की गुमान।
आईएएस की थी पत्नी ,पर सुरक्षित न रह पाईं,
क्रूर सत्ता की आड़ तले, लाज भी लपटें खाईं।


दरिंदों के संगठित दल ने, घर को जेल बनाया,
न्याय के दरवाज़े बंद रहे, डर ने सब समझाया।
चुप रहS न त मिटा देब, धमकी हर रोज़ आई,
इंसाफ कहीं खो गइल, सत्ता की भीड़ में भाई।


पुलिस बैठी तमाशबीन, गूंगा बन गइल कानून,
इज्जत रोई बेबस, नेता जखम पर छिड़के नून।
चारा-अलकतरा की दलदल, घोटालों का था खेल,
चंपा की कहानी बतावे,अपराध का असली मेल।


अब पिअ कड़वी घुंटी, शिल्पी‑गौतम के नाम लेके,
पटना के सड़क पर, इज्जत के संग तन्हाई देके।
कार पार्क में लाशें छुपल, अर्धनग्न बुत वफ़ा के,
सत्ता के साये में भुलल, सच के निशान दबा के।


विपक्ष बोले, बलात्कार भइल, साक्ष्य बा सामने,
पुलिस कहे,आत्महत्या, लोग हँसे बयान सुनाने।
सत्तापक्ष बोले,“सब झूठ बानी, न्याय करब हम”,
सच पर पर्दा गिरल, जनता अंधाकानून से बेदम।


जंगलराज के साया, घोटाले संग अपराध के मेल,
खूब भइल घोटाला, हत्या आऊ बलात्कार का खेल।
लोग देख रहल आँखों में सवाल, दिल में चोट भारी,
सचमुच में रहेला, अपराध पर सत्ता की सवारी।


बिहार की राजनीति, भाई! अदभुत चीज,
लालू के जगह तेजस्वी, पर ना बदले फिज़!
बिहार के जनता सब, करीब से जान तानी,
सबके याद बा उहे, जंगलराज की कहानी।
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