
H1B वीसा और भारत
मनोज कुमार मिश्र
हाल में ही डोनाल्ड ट्रम्प ने H1B वीसा की वार्षिक शुल्क में अप्रत्याशित वृद्धि कर दी जो शुल्क पहले 6 से 8 हज़ार अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष था उसे बढ़ा कर 1 लाख अमेरिकी डॉलर कर दिया। ये मोदी को ग्रेट फ्रेंड कहने वाले डोनाल्ड ट्रम्प की "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" श्रृंखला में टैरिफ के बाद दूसरा बड़ा हमला है। H1B वीसा के लाभार्थी सबसे ज्यादा भारतीय ही हैं क्योंकि भारतीयों का इसमें 73% हिस्सा है। ट्रम्प भूल गए कि अमेरिका अगर आज इतना शक्तिशाली है तो सिर्फ इस वजह से की पूरे विश्व का सबसे तेज मष्तिष्क आज अमेरिकी कंपनियों के लिए काम कर रहा है। चाहे गूगल हो या मेटा, चाहे अमेज़ॉन हो या माइक्रोसॉफ्ट भारतीयों के बिना इनकी कल्पना भी नहीं कि जा सकती है।
पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने एक बार कहा था अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक है पर दोस्त होना तो करीब करीब मरने जैसा है ( It may be dangerous to be America's enemy, but to be America's friend is fatal.
- Henry Kissinger) अपने को दोस्त कहकर दोस्त की पीठ में छुरा घोपने वाले ट्रम्प का यह कदम निश्चित रूप से उसकी ट्रेड डील की टीम की असफलता की खीझ से उभरी निराशा का प्रतीक है।
भारत ने इस कदम पर बहुत सधी प्रतिक्रिया दी। उसने किसी भी उत्तेजक शब्दावली का प्रयोग न करते हुए हम देखेंगे, हम सोचेंगे वाली भाषा अपनायी। भारत के प्रधानमंत्री ने इसका अप्रत्यक्ष प्रतिकार करते हुए कहा कि भारत को गर विकसित बनना है तो चिप से शिप तक सब कुछ घर मे बनाना होगा। उन्होंने शिप और मेरीटाइम इन्डस्ट्री के लिए 70 हजार करोड़ के निवेश की घोषणा कर दी। भारत ने पहले ही मोरक्को में अपना पहला प्राइवेट एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री लगा दिया है। स्पेन में भी उसने रक्षा उपकरण बनाने वाले कारखाने लगाने का करार किया है। अतः अमेरिकी प्रशासन ने इस बयान का संज्ञान लिया और सवेरे तक अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता कैरोलिन लेवित का स्पष्टीकरण सामने आ गया। उन्होंने बताया कि यह वार्षिक शुल्क नहीं है सिर्फ एक बार का शुल्क है जो अमेरिकी कंपनी ही देंगी। जो लोग अभी इस वीसा का उपभोग कर रहे हैं उनपर कोई असर नहीं पड़ेगा। वैसे भी इस वीसा का उपयोग अभी करीब 8 लाख 37 हज़ार लोग कर रहे हैं। इनमें से ज्यादार को अब कोई भी परेशानी नहीं होगी। हाँ कुछ कंपनी में कुछ लोगों को शायद निकलना पड़े लेकिन वो H1B वीसा की वजह से नहीं वरन अमेरिका में बदलती आर्थिक व्यवस्था के कारण होगा। अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी मंदी के कगार पर है। अमेरिकी शेयर बाजार में काफी बिकवाली हुई है और अनुमानतः अमेरिकी शेयर धारकों को 10 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो चुका है। अमेरिकी स्टोर्स में शेल्फ खाली हैं और सामानों की किल्लत है। सबसे ज्यादा असर दवा बाजार पर पड़ा है पहले की तुलना में दवाइयां 37% तक महंगी हो गयी हैं, अभी इनके और भी महंगी होने की संभावना है। कारण है कि भारत जो विश्व का सबसे बड़ा जेनेरिक दवाओं का निर्माता है उसने अमेरिकी बाजार में अपनी आपूर्ति कम कर दी है। अतः दवाओं की कीमतों के अभी और भी उछाल आने की संभावना है। दरअसल ट्रम्प ने जल्दीबाजी में करीब करीब पूरी दुनिया के आयातों पर 15 से 50% अतिरिक्त शुल्क लगा दिया है जो कहीं कहीं तो 100% तक है। यह टैरिफ फिलहाल अमेरिकी जनता ही दे रही है।
इस विषयांतर का अर्थ सिर्फ यह बताना था कि अमेरिकी जीवन शैली अन्य देशों से आयात पर निर्भर है क्योंकि रोजमर्रा की चीजें उस देश मे बनती नहीं है। उनकी जो सप्लाई चैन है उसको यही H1B वीसा वाले संभालते हैं। चाहे टेक कंपनी हों या रिटेल स्टोर सभी का प्रबंधन विदेशी लोगों के द्वारा ही हो रहा है। एक बात जरूर होगी कि अमेरिका में जाने वाले लोगों की संख्या अब घटेगी। यह आबादी अब पड़ोसी देशों यथा कनाडा, मैक्सिको दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस इंग्लैंड आदि में जाएगी या स्वदेश लौटेगी। लौटेगी तो यहां भी अवसरों की कमी नहीं है और जब प्रतिभा से सम्पन्न हैं तो यहां भी अपना स्टार्टअप हो या इंडस्ट्री, कुछ शुरू करेंगे ही। आप प्रतिभा से विमुख होकर प्रगति नहीं कर सकते तो क्या यह कदम अमेरिका के अंत की शुरुआत है।-
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