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दशहरा: शक्ति, शौर्य और सत्य की विजय का महा-पर्व

दशहरा: शक्ति, शौर्य और सत्य की विजय का महा-पर्व

सत्येन्द्र कुमार पाठक

दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा देदीप्यमान पर्व है जो शक्ति, शौर्य और असत्य पर सत्य की चिरंतन विजय का उद्घोष करता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि राष्ट्र की वीरता, उल्लास और सांस्कृतिक विविधता का महापर्व है, जो अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को पूरे भारतवर्ष में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।यह पर्व दो महान ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है: पहला, भगवान राम द्वारा लंकापति रावण का वध, और दूसरा, देवी दुर्गा द्वारा दुष्ट दैत्य संस्कृति का पोषक दैत्यराज महिषासुर का संहार। दोनों ही कथाएं हमें यह सिखाती हैं कि धर्म और न्याय की स्थापना के लिए बुराई का दमन अनिवार्य है।

रामचरितमानस और जनमानस की मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने इसी दिन दुष्ट राक्षस राजा रावण का वध कर धर्म की स्थापना की थी। हालाँकि, वाल्मीकि रामायण और पद्म पुराण प्राचीन ग्रंथ, विशेषकर पद्म पुराण, रावण के वध की तिथि चैत्र मास की चतुर्दशी बताते हैं, लेकिन जनसाधारण में विजयादशमी ही राम की विजय के रूप में प्रतिष्ठित है।इस दिन को दशहरा कहने का एक अर्थ "दशहोरा" यानी दसवीं तिथि का उत्सव भी है, जो दस प्रकार के पापों—काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी—के त्याग की सद्प्रेरणा देता है।

दशहरा पर्व का दूसरा महत्वपूर्ण आधार सनातन धर्म के शाक्त पंथ और देवी भागवत पुराण के अनुसार है, जहाँ इसे शक्ति-पूजा के रूप में मनाया जाता है। देवी दुर्गा ने नौ रात्रि और दस दिनों के भीषण युद्ध के बाद महिषासुर का वध किया था। यह दसवाँ दिन उनकी विजय का प्रतीक है, इसीलिए इस दशमी को 'विजयादशमी' कहा जाता है।

बंगाल, ओडिशा और असम जैसे पूर्वी राज्यों में, यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में पांच दिनों (बंगाल में) या चार दिनों (ओडिशा और असम में) के लिए मनाया जाता है। भव्य पंडालों में देवी दुर्गा की अलंकृत मूर्तियों को विराजमान किया जाता है। अष्टमी को महापूजा और बलि का आयोजन होता है, और दशमी के दिन देवी को अश्रुपूरित विदाई दी जाती है, जिसे विसर्जन कहते हैं। इस दौरान स्त्रियाँ एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है, और पुरुष आपस में गले मिलते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं।

दशहरा वर्ष की उन तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, जिन्हें किसी भी नए कार्य को शुरू करने के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती। दशहरा भारतीय संस्कृति में वीरता की पूजा और शौर्य की उपासना का पर्व है। इस दिन आयुध-पूजा या शस्त्र-पूजा का विधान है। राजा-महाराजा प्राचीन काल में इस दिन विजय की प्रार्थना करके रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। मराठा रत्न छत्रपती शिवाजी महाराज ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था। दशहरा में नया कार्य में अक्षर लेखन का आरम्भ, नया उद्योग या बीज बोना) प्रारम्भ किया जाता है, उसमें निश्चित ही विजय मिलती है।

ज्योतिषीय और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, विजयादशमी के दिन तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक माना जाता है। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग इसे और भी अधिक शुभ बनाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने उनकी विजय का उद्घोष किया था। महाभारत में, अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने अपने हथियार शमी वृक्ष पर ही छिपाए थे, जिन्हें उन्होंने गोरक्षा के समय उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। यही कारण है कि विजयादशमी पर शमी पूजन का विधान है।

दशहरा केवल रामलीला और रावण दहन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के कृषि प्रधान पहलू और क्षेत्रीय विविधताओं को भी दर्शाता है। किसान सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है, तो उसके उल्लास और उमंग को व्यक्त करने का यह पर्व एक जरिया बनता है। बिहार , उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा राज्यों में, इस दिन रामलीला का भव्य आयोजन होता है। रात्रि में रावण, मेघनाद और कुंभकरण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है, जो बुराई के अंत और सत्य की विजय का प्रतीक है। पंजाब में नवरात्रि के नौ दिन उपवास रखा जाता है, और दशमी को रावण-दहन के साथ मैदानों में मेले लगते हैं। सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, और पूरी शिवालिक घाटी जयकारों से गूंज उठती है। महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा को समर्पित होते हैं, और दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। यह दिन विद्या आरंभ करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र में इसे 'सिलंगण' के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। सायंकाल ग्रामवासी नए वस्त्रों में सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों को 'स्वर्ण' के रूप में लूटकर वापस आते हैं और परस्पर आदान-प्रदान करते हैं, जो समृद्धि और सद्भाव का प्रतीक है।गुजरात में यह पर्व नौ रातों के लिए नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है, जहाँ मिट्टी के रंगीन घड़े को देवी का प्रतीक मानकर, लड़कियां सिर पर रखकर गरबा नृत्य करती हैं। पुरुष और स्त्रियाँ रंगीन डंडों को आपस में बजाते हुए घूम-घूम कर डांडिया रास करते हैं। यह पर्व भक्ति, संगीत और पारंपरिक लोक-नृत्य का अद्भुत संगम होता है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे द्रविड़ प्रदेशों में दशहरा नौ दिनों तक चलता है, जहाँ तीन देवियों—पहले तीन दिन लक्ष्मी (धन और समृद्धि), अगले तीन दिन सरस्वती (कला और विद्या), और अंतिम दिन दुर्गा (शक्ति)—की पूजा होती है। इस क्षेत्र में रावण-दहन का आयोजन नहीं होता है। कर्नाटक का मैसूर दशहरा पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इस अवसर पर मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुल्हन की तरह सजाया जाता है। हाथियों का श्रृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस (जंबो सवारी) निकाला जाता है, जिसमें लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का आनंद लेते हैं।छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में दशहरा एक अनूठी परंपरा है। यहाँ यह पर्व राम की विजय के रूप में नहीं, बल्कि स्थानीय आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित है। यह पर्व पूरे 75 दिनों तक चलता है—श्रावण मास की अमावस से आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक। इसकी शुरुआत 'काछिन गादि' (देवी से अनुमति) से होती है, जिसके बाद 'जोगी-बिठाई', 'भीतर रैनी' (विजयदशमी), 'बाहर रैनी' (रथ-यात्रा) और अंत में 'मुरिया दरबार' होता है।

दशहरा अथवा विजयादशमी, चाहे भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए या देवी दुर्गा की पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह आदिशक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है, और हर्ष तथा उल्लास का पर्व है।

यह उत्सव शक्ति और शक्ति के समन्वय को बताता है। नवरात्रि में जगदम्बा की उपासना से शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य, दशहरे के दिन विजय प्राप्ति के लिए तत्पर होता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति के इस मूलभूत विचार को दर्शाता है कि यदि युद्ध अनिवार्य हो, तो शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा न कर, उस पर हमला कर उसका पराभव करना ही कुशल राजनीति और धर्म है। दशहरा हमें याद दिलाता है कि अधर्म का अंत निश्चित है, और सत्य, चाहे जितनी भी कठिनाइयों से गुज़रे, अंततः विजयी होता है। यह सिर्फ एक दिन का त्योहार नहीं, बल्कि जीवन भर काम, क्रोध, लोभ जैसे दस पापों पर विजय प्राप्त करने की सद्प्रेरणा है। प्रवासी भारतीयों द्वारा भी यह पर्व उतने ही ऊर्जा और उल्लास से दूसरे देशों में मनाया जाता है।

नेपाल में दशैं , दशइन सबसे बड़ा और प्रमुख त्योहार है। यह 15 दिनों तक चलता है, जिसमें विशेष रूप से देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और इसे महिषासुर पर देवी की विजय के रूप में मनाया जाता है। परिवार के बुजुर्गों द्वारा छोटों को 'टीका' (माथे पर लगाया जाने वाला लाल रंग का मिश्रण) और आशीर्वाद देना एक महत्वपूर्ण रस्म है।

बांग्लादेश दुर्गा पूजा/विजोया दशमी यह बंगाली हिंदू समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है। इसे देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर पर विजय के रूप में पाँच दिनों तक मनाया जाता है। विजयादशमी के दिन मूर्ति विसर्जन किया जाता है और सिंदूर खेला की रस्म होती है।मॉरीशस में दशहरा/विजयादशमी भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी के कारण यहाँ यह एक बड़ा त्योहार है। रामलीला का आयोजन होता है और भारत की तरह ही रावण दहन की परंपरा भी निभाई जाती है।इंडोनेशिया रामायण मंचन इंडोनेशिया की प्राचीन संस्कृति में रामायण की कहानियों का विशेष स्थान है। दशहरे के दिन यहाँ रामायण के दृश्यों और राम-रावण युद्ध का मंचन किया जाता है। हालाँकि, कुछ भारतीय समुदाय यहाँ भी प्रतीकात्मक रूप से रावण दहन करते हैं। थाईलैंड में रामकियेन थाईलैंड की रामायण को 'रामकियेन' कहा जाता है। इस दिन रामकियेन के नाटकीय मंचन होते हैं, जिसमें राम और रावण के युद्ध को दर्शाया जाता है।

मलेशिया दशहरा मुख्य रूप से भारतीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति और परंपराओं के अनुसार रामलीला और रावण के पुतले का दहन होता है। भूटान दशहरा यहाँ धीरे-धीरे यह एक धार्मिक और सामाजिक उत्सव बन चुका है। रावण दहन और रामायण से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अमेरिका , इंग्लैंड ,ऑस्ट्रेलिया, कनाडा) दुर्गा पूजा/दशहरा इन देशों में रहने वाले हिंदू समुदाय, विशेष रूप से भारतीय और नेपाली प्रवासी, इसे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। कई शहरों में दुर्गा पूजा पंडालों का भव्य आयोजन होता है और सामुदायिक केंद्रों में रामलीला तथा रावण दहन भी किया जाता है। श्रीलंका दुर्गा पूजा श्रीलंका में भी तमिल हिंदू समुदाय दुर्गा पूजा और विजयादशमी मनाते हैं, लेकिन यह रावण का देश होने के कारण, यहाँ रावण दहन की परंपरा सामान्य नहीं है, बल्कि यह शक्ति और विजय की पूजा के रूप में मनाया जाता है।

राक्षस राज रावण, कुम्भकरण, और मेघनाथ के पुतलों को जलाना, जिसे 'रावण दहन' कहा जाता है, दशहरा उत्सव का सबसे बड़ा और सबसे प्रतीकात्मक हिस्सा है। यह परंपरा बुराई पर अच्छाई की विजय को एक सार्वजनिक और नाटकीय रूप में दर्शाती है। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, रावण दहन की सार्वजनिक रूप से शुरुआत का सबसे पुष्ट दावा झारखंड की राजधानी रांची में 1948 से प्रारंभ हुई है। वर्ष: 1948 में शुरुआत करने वाले: पाकिस्तान से आए हुए पंजाबी शरणार्थी परिवारों (बन्नुवाल रिफ्यूजी) के मुखिया स्व. लाला खिलंदा राम भाटिया और उनके सहयोगियों द्वरा डिग्री कॉलेज के प्रांगण में (अब रांची कॉलेज, मेन रोड)। विभाजन के बाद अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने के लिए, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक था। शुरुआत में पुतले की ऊँचाई लगभग 12 फीट थी। दिल्ली में शुरुआत (1953):से राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में रावण दहन का कार्यक्रम सबसे पहले 17 अक्टूबर 1953 को किया गया था। नागपुर में शुरुआत: नागपुर में भी रावण दहन की शुरुआत लगभग 1952 में हुई थी। राक्षस संस्कृति के पोषक रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतला दहन की परंपरा, जो आज उत्तर भारत की रामलीलाओं का एक अभिन्न अंग है, प्राचीन कथाओं पर आधारित है, लेकिन इसे एक विशाल, वार्षिक और सार्वजनिक उत्सव का रूप सबसे पहले आधुनिक भारत में (1940 के दशक के अंत में), संभवतः रांची शहर में, विस्थापित पंजाबी हिंदू समुदाय द्वारा दिया गया था। 'लंका दहन' का अर्थ है हनुमान जी द्वारा रावण की लंका को जलाना, जो रावण वध से पहले हुआ था। यह घटना रामलीला के दौरान मंचन के रूप में दिखाई जाती है, लेकिन रावण दहन की तरह 'लंका दहन' का पुतला जलाने का कोई वार्षिक सार्वजनिक उत्सव नहीं होता है। दशहरा (विजयादशमी) का शाब्दिक अर्थ और इसका नैतिक महत्व, विशेष रूप से काम, क्रोध, घमंड, ईर्ष्या, लोभ, और हिंसा जैसी बुराइयों पर विजय प्राप्त करने के संदर्भ में, गहरा है। यह पर्व केवल एक ऐतिहासिक घटना का उत्सव नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धिकरण और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है।

दश जिसका अर्थ है दस और हारा जिसका अर्थ है दूर करना या परास्त करना है। दशहरा पर्व प्रतीकात्मक रूप से दस सिर वाले राक्षस राजा रावण पर भगवान राम की विजय के माध्यम से यह संदेश देता है कि व्यक्ति को अपने भीतर की दस प्रमुख बुराइयों (जो रावण के दस सिरों का प्रतिनिधित्व करती हैं) पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।

दस आंतरिक शत्रु हैं जिन पर दशहरा विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देता है: आंतरिक शत्रु में काम अत्यधिक विषय-वासना या अनियंत्रित भौतिक इच्छाओं को दर्शाता है। यह सभी पापों की जड़ है, क्योंकि यह व्यक्ति को नैतिक सीमाएँ तोड़ने के लिए प्रेरित करता है। क्रोध अत्यधिक गुस्सा, प्रतिशोध और शत्रुता है। क्रोध विवेक को नष्ट कर देता है और व्यक्ति को विनाशकारी कार्य करने के लिए मजबूर करता है। घमंड/मद , मद (अभिमान) इसे अहंकार या घमंड भी कहते हैं। यह आत्म-मुग्धता है जो व्यक्ति को दूसरों को तुच्छ समझने और नैतिक शिक्षाओं को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित करती है। लोभ (Greed) लोभ लालच या धन और संपत्ति के प्रति अत्यधिक आसक्ति। यह चोरी, भ्रष्टाचार और अन्याय का मूल कारण है। ईर्ष्या व मतसर दूसरों की सफलता या संपत्ति को देखकर होने वाली जलन। यह सद्भाव को नष्ट करती है और द्वेष का संचार करती है। मोह अंधा मोह या भ्रम। यह व्यक्ति को परिवार, संपत्ति आदि में इतना बाँध देता है कि वह सत्य और धर्म को भूल जाता है। हिंसा (Violence) हिंसा किसी भी प्राणी या प्रकृति को शारीरिक या मानसिक रूप से चोट पहुँचाना। दशहरे का संदेश है कि अहिंसा परम धर्म है। असत्य असत्य जानबूझकर झूठ बोलना या सत्य से मुँह मोड़ना। यह विश्वास और सामाजिक ताने-बाने को तोड़ता है।. आलस्य आलस्य कर्म के प्रति उदासीनता या अकर्मण्यता। यह प्रगति और धर्म (कर्तव्य) के मार्ग में बाधा है। चोरी/अनीति चोरी/अनीति दूसरों के अधिकारों का हनन करना या अनैतिक कार्य करना। रावण का वध केवल एक बाहरी विजय नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने मन के रावण को जीतने का आह्वान है। राक्षस संस्कृति का राजा रावण का अहंकार और पतन काफी हद तक काम (सीता को पाने की वासना) और लोभ (असाधारण शक्तियों का लालच) से प्रेरित था। दशहरा यह सिखाता है कि अनियंत्रित इच्छाएँ और भौतिक वस्तुओं का लालच व्यक्ति की नैतिक शक्ति और विवेक को क्षीण कर देता है।: हमें अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना चाहिए, न कि उनके द्वारा नियंत्रित होना चाहिए। संतोष लोभ पर विजय प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है।क्रोध और उससे उपजी हिंसा त्वरित विनाश का कारण बनती है। रावण की सेना ने क्रोध और अहंकार में आकर कई बार धर्म की सीमाएँ तोड़ीं।: विजयादशमी हमें धैर्य और अहिंसा के महत्व का स्मरण कराती है। असली शक्ति क्रोध को दबाने और शांति बनाए रखने में निहित है, न कि उसे व्यक्त करने में। घमंड रावण का सबसे बड़ा दोष था; उसने अपनी अपार शक्ति और ज्ञान के कारण स्वयं को भगवान से ऊपर समझा। ईर्ष्या (देवताओं और राम की शक्ति से जलन) ने उसे विनाश की ओर धकेला।: दशहरा का पर्व विनम्रता अपनाने और अपनी सफलताओं के प्रति कृतज्ञ रहने की प्रेरणा देता है। दूसरों की सफलता से ईर्ष्या करने के बजाय, हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए । असत्य का रास्ता आसान लग सकता है, लेकिन यह अंततः भ्रम (मोह) की ओर ले जाता है। रावण को अपनी शक्ति और उसके परिवार पर इतना अंधा मोह था कि वह विभीषण की सत्य-आधारित सलाह भी नहीं सुन पाया। यह पर्व हमें सत्यनिष्ठा का मार्ग अपनाने और जीवन के क्षणभंगुर मोह और भ्रम से बाहर निकलकर वास्तविक सत्य को पहचानने की शिक्षा देता है।

दशहरा (विजयादशमी) इस प्रकार हमें यह संदेश देता है कि सबसे बड़ी विजय बाहरी युद्ध जीतने में नहीं, बल्कि अपने चरित्र को शुद्ध करने और अपने भीतर निहित बुराइयों के 'रावण' को जलाने में है। यह आत्म-सुधार, आत्म-नियंत्रण और जीवन में धर्म (कर्तव्य और नैतिकता) के मार्ग पर चलने का आह्वान करता है।

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