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सच्चा लाल

सच्चा लाल

श्री मार्कण्डेय शारदेयः
ऊँ नमश्चण्डिकायै
तुझसा शेर कहाँ दिखता है, तुझको पा माँ हुई निहाल।
तू भारत का सच्चा लाल।तू भारत का सच्चा लाल।।
देशभक्ति में सदा समर्पित,
तन, मन, धन, जीवन भी अर्पित,
रात्रि-दिवस का भेद हटाकर सीमा-प्रहरी-सी है चाल।
ऋतु-परिवर्तन होता आए,
शत्रु तबाही भले मचाए,
गाली खा,अपमान-गरल पी बना रहा तू कंठेकाल।
अक्खड़ फक्कड़ खूब घुमक्कड़,
स्वार्थसिद्धि में रहा भुलक्कड़,
ऋद्धि-सिद्धि-सम्पन्न राष्ट्रहित बुनता कूटनीति का जाल।
राम-कृष्ण तुझमें बसते हैं,
छत्र, शिवा, सुभाष रहते हैं,
गुरुजी-सा ही सवा लाख पर एक चढ़ाने पर न मलाल।

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