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पितृ पक्ष में शास्त्रों में वर्णित पितर पक्ष की कथा

पितृ पक्ष में शास्त्रों में वर्णित पितर पक्ष की कथा

आनन्द हठीला

  • शिव पुराण के अष्टम स्कन्द में कोटि रूद्र संहिता में ये कथा है ----
एक बार गौतम महर्षि ने ब्रह्मा जी की 10000 वर्ष तक तपस्या की। उससे उन्हें बहुत सी सिद्धियां प्राप्त हो गई। गौतम ऋषि जिस क्षेत्र में रहते थे। उस समय वहां पानी का अकाल पड़ा हुआ था। गौतम ऋषि ने वरुण देव की तपस्या की। वरुण देव ने 6 महीने में ही प्रगट होकर उनको वरदान मांगने के लिए कहा-- गौतम महर्षि ने कहा-- हमारे क्षेत्र में जल की वर्षा हो जाए जिससे यहां अकाल समाप्त हो जाए। वरुण देव ने कहा-- यह मेरे बस की बात नहीं है। कुछ बातों में शंकर जी का ही विधान है। परंतु मैं आपको वरदान स्वरुप पानी का एक गड्ढा भर देता हूं। जो हर समय भरा रहेगा ।जिससे आप अपने सब कार्य देव, पितृ, अन्न उगाना पूर्ण कर सकोगे। वरुण देव की कृपा से गौतम ऋषि के आश्रम के पास एक गड्ढा पानी से भर गया। अब वहां और भी ऋषि पत्नियां पानी भरने के लिए आने लगी। एक बार गौतम ऋषि के शिष्य भी पानी भर रहे थे। उन ऋषि पत्नियों ने उन शिष्यों को डांटकर भगा दिया। अब ऋषि पत्नियां ऐसा ही करती। पहले अपने आप अपनी भरती। गौतम ऋषि के शिष्यों को भगा देती। अब गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या पानी भरने लगी। अन्य ऋषि पत्नियों ने अपने पतियों को जाकर झूठ-मुठ अहिल्या जी की शिकायत कर दी। यह हमें गड्ढे में से पानी नहीं भरने देती। इनको अपने गड्ढे का अहंकार है। अब तो ऋषियों ने गौतम ऋषि से बदला लेने की सोची। उन्होंने मिलकर एक यज्ञ किया। यह यज्ञ काफी दिन चला। उसे यज्ञ में से यज्ञ देवता प्रकट हुए और उनको वरदान मांगने के लिए कहा-- उन ऋषियों ने कहा-- हम गौतम ऋषि से बदला लेना चाहते हैं। कुछ ऐसा करो-- गौतम ऋषि का अनिष्ट हो जाए और वह यह जगह छोड़ने पर मजबूर हो जाए। यज्ञ देवता ने उन ऋषियों को बहुत समझाया। गौतम महर्षि बहुत बड़े तपस्वी है। उनके साथ ऐसा नहीं करना चाहिए। परंतु ऋषि नहीं माने। उन्होंने यज्ञ देवता को कहा-- आपको हमें यह वरदान तो देना ही पड़ेगा अब यज्ञ देवता उन सबके सामने मजबूर हो गए क्योंकि उन्होंने यज्ञ देवता का अनुष्ठान किया था। यज्ञ देवता ने मजबूरी में उनका वचन दिया ऐसा ही होगा। यज्ञ देवता एक निर्बल गाय का शरीर धारण करके गौतम ऋषि के खेतों में घुस गए और उनकी फसल खाने लगे। गौतम ऋषि ने बिल्कुल पतले तिनके समान डंडे से गाय को जैसे ही खेतों से खदेड़ा। गाय मर गई। अब तो सारे ऋषियों ने महर्षि गौतम के ऊपर गौ हत्या का आरोप लगा दिया और कहा-- तुमने गौ हत्या की है। इसलिए हम सब तुम्हारा बहिष्कार करते हैं। गौतम ऋषि और उनकी पत्नी ने उन ऋषियों से बहुत माफी मांगी। परंतु सब ऋषियों ने उनका बहिष्कार कर दिया। पितृपक्ष में जो पितरों का समय आया। गौतम ऋषि किसी ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहते थे। क्योंकि ब्राह्मण को भोजन करवाये बिना श्राद्ध संपूर्ण नहीं होता। परंतु कोई भी ब्राह्मण गौतम ऋषि के घर भोजन करने के लिए तैयार नहीं हुआ। गौतम ऋषि और उनकी पत्नी अहिल्या को बहुत दुख हुआ। तभी यज्ञ देवता वहां प्रकट हो गए और उन्होंने गौतम ऋषि को कहा-- ऋषिवर आप दुखी ना होईए। शास्त्रों में ऐसा विधान है--- ब्राह्मण ना मिलने की स्थिति में आप गाय को भी भोजन करवा सकते हो। क्योंकि गाय माता भी ब्राह्मण का ही स्वरुप है। गौतम ऋषि ने कहा-- मुझे गौ हत्या का दोष लगा है। यज्ञदेवता ने कहा-- वह गाए तो बनावटी थी। इन ऋषियों के कहने पर ही मै ही वह गाए बन कर आया था। यज्ञ देवता ने गौतम ऋषि से माफी मांगी। अब गौतम ऋषि ने श्राद्ध संपूर्ण किया। उससे वह अन्य ऋषि और जल भून गए। वह सभी ऋषि गौतम ऋषि को कहने लगे-- तुमने अपने पूर्वजों के प्रति भी अपराध किया है। अब तुम यह जगह छोड़कर चले जाओ। अगर तुम प्रायश्चित करना चाहते हो। एक कोस की दूरी पर ब्रह्मगिरी पर्वत है। तुम उसकी तीन बार परिक्रमा करो। और गंगा जी को वहां तक लेकर आओ तब तुम्हारे पितरों का उद्धार होगा। नहीं तो तुम कभी अपनी शक्ल मत दिखाना। उन ऋषियों ने उनका आश्रम और उनकी सारी जमीन छीन ली। अब गौतम ऋषि अपनी पत्नी अहिल्या के साथ ब्रह्मगिरी पर्वत पर रहने लगे। वह और उनकी पत्नी शंकर भगवान की आराधना करने लगे। उन्होंने एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग बनाए और उनकी तपस्या करते थे। एक बार शंकर भगवान उनके आराधना से वहां प्रकट हो गए और वरदान मांगने को कहा-- गौतम ऋषि ने कहा-- प्रभु यदि आप मुझ पर प्रसन्न है। तो गंगा जी को यहां विराजमान कर दीजिए। शंकर जी ने गंगा जी को वहां प्रकट कर दिया। गंगा जी शंकर जी को कहने लगी- प्रभु यदि आप पार्वती जी सहित यहां विराजमान होते हैं। तो मैं भी यही रहूंगी। क्योंकि मुझे भी आपका सनिध्य चाहिए। अब प्रभु वहां त्रंबकेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हो गए और वह गंगा गौतमी गंगा कहलाई। जब उन्हें ऋषियों को यह पता चला-- गौतम ऋषि ब्रह्मगिरी पर्वत पर गंगा जी को ले आए हैं। तो वह सब गंगा जी के दर्शन करने आए। परंतु गंगा जी ने उनका दर्शन नहीं दिए वह लुप्त हो गई। तब गौतम ऋषि ने गंगा जी को प्रकट होने के लिए कहा-- गंगा जी ने कहा-- इन ऋषियों ने आपका अपराध किया है। इसलिए इनको शिव पूजन का कोई अधिकार नहीं है। परंतु गौतम ऋषि ने कहा-- देवी इनको माफ कर दो। क्योंकि इनके कारण ही मेरा भला हुआ है। मुझे आपके और शंकर भगवान के दर्शन प्राप्त हुए हैं। और इनके कारण ही यहां त्रंबकेश्वर महादेव की उत्पत्ति भी हुई है। त्रंबकेश्वर महादेव तीन शिवलिंग के रूप में है। ऐसा कहा जाता है-- यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश है।
बोलिए त्रंबकेश्वर महादेव की जय

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