"काश : जीवन का अनन्त संधान"
पंकज शर्माकाश—
यह केवल शब्द नहीं,
मानव-चेतना का वह गूढ़ स्वर है
जो अधूरे और अपूर्ण में भी
पूर्णता का आभास खोज लेता है।
जब सपनों की किरचें बिखर जाती हैं,
जब आकांक्षाओं की नाव बीच धारा डगमगाती है,
तब यही "काश"
एक अदृश्य पतवार बनकर
हमें किनारे तक खींच लाता है।
यह असफलता के अंधकार में
संभावना का दीपक है,
यह निराशा की राख में
उम्मीद की धधकती चिंगारी है।
काश—
मनुष्य के भीतर छिपा वह प्रतिप्रश्न है
जो नियति को चुनौती देता है।
यह कहता है—
"जो आज है, वह अंतिम नहीं;
जो अधूरा है, वह शून्य नहीं।"
इसी "काश" ने
मनुष्य को पहाड़ों पर पुल बनाने की प्रेरणा दी,
आकाश में उड़ने का साहस दिया,
समंदर की अतल गहराइयों तक उतरने का निमंत्रण दिया।
हाँ, कभी यह मोह भी है,
मरीचिका भी है,
कभी अपूर्णता का दंश भी देता है—
पर यही तो उसकी महिमा है!
अधूरेपन को झुठलाकर
जीवन को आगे बढ़ाना,
यही "काश" का धर्म है।
अंततः,
काश कोई कल्पना नहीं,
बल्कि जीवन का अनन्त संधान है—
जहाँ हर खोया हुआ अवसर
एक नए अवसर में ढलता है,
और हर असंभव
एक संभाव्य में रूपांतरित हो जाता है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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