"हंश की वाणी, एक गुरु की कहानी"
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र"राकेश"
(डॉ. रामनरेश मिश्र 'हंश' को समर्पित)
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धरती मगध की, शब्दों की खान,
जहाँ जन्मे 'हंश', साहित्यकार महान।
कचनामा ग्राम का सरल सा धीर,
बना साहित्य में वटवृक्ष सम वीर।
संस्कृत का गूढ़, हिंदी की बात,
शब्दों से देते, जीवन की सौगात।
ग्राम्य गंध थी उनकी लेखनी में,
सच बोलता था हर छंद, हर रेखनी में।
'सुजाता' की ममता, 'बुद्धदेव' की दृष्टि,
हंश की रचनाएँ बनीं कालजयी सृष्टि।
‘एकारसी’ में बसी उनकी आवाज़,
मगही को दी जिसने नव जीवन का साज।
न थे वे केवल कवि या शिक्षक मात्र,
थे संस्कृति के सजग सेनापति भ्रात।
बिहार की धरती का गौरव, प्रखर,
ज्ञान की गंगा, थे शुद्ध और अमर।
सेवानिवृत्ति के बाद भी थके नहीं,
मगध की सेवा से कभी रुके नहीं।
नबाबगंज की गलियों में बसा एक दीप,
जिसने शब्दों से जलाए कई दीप।
गद्य हो या पद्य, ग़ज़ल हो गीत,
‘हंश’ के पास था हर भाव का मीत।
न भाषा की सीमा, न शैली का बंधन,
उनके भीतर था साहित्य का चंदन।
नमन है उनको, जो शब्दों के पुजारी थे,
मगध के मिट्टी से जो सच्चे सिपाही थे।
डॉ. रामनरेश मिश्र ‘हंश’—एक युग, एक स्वर,
साहित्य बना और अधिक गूढ़, गंभीर, अमर।
🙏🙏
यह कविता डॉ. रामनरेश मिश्र ‘हंश’ जी के जीवन, कृतित्व और उनके साहित्यिक योगदान के आधार पर मैंने स्वयं लिखी है।
इसका उद्देश्य श्रद्धांजलि देना, सम्मान प्रकट करना और उनके योगदान को भावनात्मक रूप में प्रस्तुत करना है।
डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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