"हिंदी : संस्कृति की सुरभि"
हिंदी केवल भाषा नहीं,
यह हमारे होने की गवाही है,
धरती की गंध है,
गंगा की धारा है,
और पीढ़ियों की स्मृति में बसी
एक अनन्त ध्वनि।
इसकी धड़कन में
किसान की थकन भी है,
और बच्चे की किलकारी भी,
यह लोकगीत की बाँसुरी है,
और शास्त्रों का गंभीर मंत्र भी।
हिंदी—
तुम्हारे अक्षरों में ओंकार की प्रतिध्वनि है,
तुम्हारी वाणी में ऋतुओं का चक्र,
तुम्हारे स्वर में पंखों का कंपन,
और जन-मन की आत्मा का संगीत।
तुम्हें सजना चाहिए
वसंत की तरह,
बहुरंगी आभा के साथ,
किन्तु रहना चाहिए
निर्मल और निर्विकार,
जैसे आत्मा का स्वभाव,
जो न टूटता है, न मिटता।
हे हिंदी,
तुम्हारी निष्कलुषता ही
हमारे विचारों का प्रकाश बने,
तुम्हारी सरसता ही
संस्कृति का कंठहार हो,
और तुम्हारी सत्यनिष्ठा ही
मानवता का आभूषण।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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