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"स्वार्थी दुनिया"

"स्वार्थी दुनिया"

प्राचीन काल की बात है। रामनगर में श्रीकांत झा नाम का ब्राह्मण रहता था। परिवार में पंडितजी के अलावा उनकी पत्नी, एक बेटी और दो बेटे थे। पंडितफी अपने बच्चों से अगाध प्रेम करते थे। ठीक इसके विपरीत इनकी पत्नी और बच्चे बात-बात पर इनसे झगड़‌ते रहते थे। पंडितजी जिल्लत भरी जिन्दगी से उब चुके थे। आखिरकार उन्होंने जिन्दगी को समाप्त करने का निश्चय किया।

एक रात पंडित जी मोह - माया को त्याग आत्महत्या करने निकल पड़े। गाँव से बाहर निकलकर एक बगीचे में पहुँचे। काफी देर तक इसी उधेड़बुन में फंसे रहे कि आत्महत्या कैसे की जाय। अंत में फाँसी लगाकर मरने की विधि को उन्होंने चुना। गला में रस्सा फंसा कर पंडितजी ज्यों ही लटकने वाले थे , तभी अचानक एक महात्मा प्रकट हुए और बोले, "अरे भाई, तुम आत्महत्या क्यों कर रहे हो? आत्महत्या करना पाप है।" पंडित जी बोले, "महात्माजी मैं अपनी जिन्दगी से तंग आ गया हूँ। घर के सभी सदस्य मुझसे नाराज रहते हैं। किसी को भी मेरा जीना पसन्द नहीं है। इसलिए मैं आत्महत्या कर रहा हूँ।" महात्माजी ने पंडित जी को काफी समझा बुझाकर आत्महत्या नहीं करने के लिए मना लिया। उन्होंने पंडित जी को एक बकरी दिया और कहा, "तुम्हें जब भी किसी चीज की जरूरत पड़े तो वस्तु का नाम लेकर एक डण्डे से बकरी के पीठ पर मारना। ऐसा करने के बाद वह वस्तु तुम्हें मिल जाएगा। इतना कहकर महात्मा जी अचानक गायब हो गए। पंडित जी उस बकरी को लेकर वापस अपने घर लौट गए।

बकरी को साथ लाए देख उनकी पत्नी पूछ बैठी कि इस बकरी को कहां से चुरा कर ला रहे हैं? पत्नी की चुभन भरी बात सुनकर वे तिलमिला उठे लेकिन पुनः अपने को संयमित कर बोले, "एक यजमान ने मुझे दान में दिया है।" उन्होंने पत्नी को बकरी का राज नहीं बताया। वे जानते थे कि यदि बकरी का राज बता देंगें तो स्वयं मुसीबत में पड़ जाएँगे।

पंडित जी अपनी जरूरतों की पूर्ति बकरी से कर लेते थे। उनका जीवन मस्ती से कटने लगा। अचानक उन्हें एक दिन किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा। पंडित जी की गैरहाजिरी में उनकी पत्ली ने बकरी को कसाई के हाथों बेच दिया। पंडितजी जब दूसरे दिन घर लौटे तो बकरी को न पाकर काफी दुःखी हुए। उन्होंने पत्नी से पूछा तो बोली, "मुझे पैसों की जरूरत थी इसलिए उसे कसाई के यहाँ बेच आयी । यह सुनकर पंडित जी दौड़े- दौड़े कसाई के पास पहुंचे लेकिन तब तक बकरी हलाल हो चुकी थी। पंडित जी अपना सिर पकड़ कर वहीं बैठ गए। कुछ दिन तक पंडित जी परिवार के साथ रहे लेकिन फिर वही किच-किच शुरू हो गया। इस बार उन्होंने निश्चय किया कि किसी के रोकने पर भी वे नहीं रुकेंगे।

पंडित जी दूसरी बार आत्महत्या करने के लिए पुनः उसी स्थान पर पहुंचे। ज्यों ही पंडितजी ने फांसी का फंदा अपने गले में डाला त्यों ही पहले की भाँति महात्मा जी प्रकट हुए। उन्होंने पूछा, "पंडितजी, अब कौन - सी आफत आ गयी कि आप फिर से आत्महत्या करने के लिए उतारू हैं। पंडितजी ने अपनी पत्नी की करतूत से महा‌त्मा जी को अवगत कराया और बोले, " महात्मा जी इस बार आप मुझे मत रोकिए।" महात्मा जी बोले, "मैं तुम्हें अंतिम बार रोक रहा हूँ। मैं तुम्हें एक जड़ी दे रहा हूँ। घर पहुंचते ही यह जड़ी तुम अपने मुँह में रख लेना। जड़ी के प्रभाव से तुम कुछ समय के लिए मूर्च्छित हो जाओगे । घर के सदस्य तुम्हें मरा समझकर क्या-क्या बोलते हैं उसे तुम अपनी कानों से सुन लेना। इसके बाद तुम मरना चाहोगे तो मैं कभी नहीं रोकूंगा।" इतना कहकर महात्मा जी गायब हो गए।

पंडित जी भारी मन से वापस घर लौट पड़े। घर पहुंचते ही उन्होंने महात्मा जी द्वारा दिए गए जड़ी को मुख में डाल लिया। महात्मा जी के कथनानुसार ज्यों ही पंडित जी ने जड़ी को मुख में डाला त्यों ही वे मूर्च्छित होकर आँगन में गिर पड़े। पंडितजी को गिरा देख सभी उनकी और दौड़े। उन्होंने पंडितजी को काफी हिलाया-डुलाया मगर वे टस से मस नहीं हुए। सभी को यह विश्वास हो गया कि पंडितजी अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनकी पत्नी एवं बच्चें दहाड़ मारकर रोने लगे। रोने की आवाज सुनकर पास-पड़ोस के लोग पंडितजी के यहाँ पहुँचे। पंडितजी को मरा देखकर लोग अफसोस करने लगे। सभी लोग मिलकर उनकी अंतिम क्रिया-कर्म की तैयारी करने लगे ।

जड़ी के प्रभाव से पंडित जी का शरीर कुछ ज्यादा फुल गया था। घर के संकरे दरवाजे से उनका शव निकालना मुश्किल था। सभी लोगों ने पंडिताइन से कहा कि दरवाजा को तोड़कर ही शव निकाला जा सकता है। पंडिताइन ने जब उनकी बात सुनी तो फौरन रोना बन्द कर बोली, "आप लोग दरवाजे तोड़‌ने की बात नहीं कीजिए। शायद आप लोगों को मालूम नहीं कि कितनी मेहनत से पंडित जी ने दरवाजा लगवाया था। यदि यह टूट गया तो फिर कौन बनवाएगा।" पंडिताइन की बात सुनकर लोग कहने लगे कि पंडितजी को श्मशान पहुँचाने के लिए घर से बाहर तो निकालना ही पड़े‌गा । पंडिताइन बोली कि इनको मरना था सो मर ही गए अब इनकी वजह से दरवाजे को नुकसान क्यों पहुंचाया जाय । पंडित जी के इस नश्वर शरीर का अब कोई काम नहीं इसलिए क्यों ना इनके शरीर को टुकड़े-टुकड़े करके घर से बाहर निकाल दिया जाय। पंडिताइन की बात सुनकर लोग स्तब्ध रह गये। वे बोले कि ठीक है आप पंडित जी के शरीर के टुकड़े कर दीजिए तब हमलोग इन्हें श्मशान पहुंचा देंगे। पंडिताइन लोगों की बात से सहमत हो गयी।

पंडित जी सभी की बातें ध्यान से सुन रहे थे। पंडिताइन ने ज्यों ही पंडित जी को काटने के लिए कुल्हाड़ी उठायी त्यों ही पंडित जी उठकर भाग खड़े हुए। भूत समझकर लोगों ने उनका पीछा करना व्यर्थ समझा। वे भागकर पुनः उसी पेड़ के नीचे पहुँचे। अब वे किसी भी कीमत पर जीना नहीं चाहते थे। तभी वहाँ महात्मा जी प्रकट हुए और बोले , 'पंडित जी, वास्तव में आपका जीवन कष्टमय है। इस दुनिया में कोई किसी का नहीं है। सिर्फ स्वार्थ - सिद्धि के लिए लोग एक दूसरे से संबंध बनाते हैं। इतना कहकर महात्मा जी गायब हो गए। पंडितजी ने पेड़ से लटक कर अपने कष्टमय जीवन का अंत कर दिया।

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि मुसीबतों से घबराकर कोई अनुचित कदम नहीं उठाना चाहिए बल्कि हिम्मत से उसका मुकाबला करना चाहिए। दूसरी सीख हमें यह मिलती है कि इस दुनिया में जो आया है वह अकेला है और अकेला ही चला जाएगा। इस दुनिया में ना कोई अपना है और ना कोई पराया। सभी अपना स्वार्थ साधने के लिए ही एक - दूसरे से संबंध बनाते हैं। मुसीबत पड़ने पर सभी संबंधी अपना संबंध विच्छेद कर लेते हैं। अपनों की पहचान बुरे समय में ही होती है।
➡️ सुरेन्द्र कुमार रंजन

(स्वरचित एवं अप्रकाशित लघुकथा)
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