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अनंत चतुर्दशी: भगवान विष्णु का अनंत आशीर्वाद

अनंत चतुर्दशी: भगवान विष्णु का अनंत आशीर्वाद

सत्येन्द्र कुमार पाठक
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है, जिन्हें सृष्टि का पालनकर्ता और अनंत शक्ति का प्रतीक माना जाता है। अनंत पूजा, जिसे अनंत चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है, जिन्हें सृष्टि का पालनकर्ता और अनंत शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इस पूजा का इतिहास, इसका महत्व और इसे करने की विधि अत्यंत रोचक और आध्यात्मिक है।
अनंत पूजा की शुरुआत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कथा महाभारत काल से जुड़ी है ।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडवों को उनके राज-पाट से वंचित कर दिया गया था और वे वन-वन भटक रहे थे, तब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को यह व्रत करने की सलाह दी थी। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि यह व्रत करने से उन्हें उनका खोया हुआ राज्य और वैभव पुनः प्राप्त हो जाएगा। युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के बताए अनुसार विधि-विधान से यह व्रत किया, जिसके बाद उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिली और वे महाभारत के युद्ध में विजयी होकर हस्तिनापुर के सम्राट बने। इस कथा के अनुसार, अनंत पूजा की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण ने ही की थी, ताकि भक्त जीवन के कठिन समय में भी ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकें।
एक और प्रसिद्ध कथा कौण्डिन्य मुनि और उनकी पत्नी शीला से जुड़ी है। सत्ययुग में सुमंत नामक एक ऋषि थे, जिनकी पुत्री शीला का विवाह कौण्डिन्य मुनि से हुआ था। एक बार, जब वे यात्रा कर रहे थे, तो शीला ने रास्ते में कुछ महिलाओं को अनंत पूजा करते देखा। उन्होंने भी इस पूजा में भाग लिया और अपनी कलाई पर अनंत डोरा बांधा। इस व्रत के प्रभाव से उनका जीवन धन-धान्य और सुख-समृद्धि से भर गया।लेकिन, कौण्डिन्य मुनि ने अहंकारवश उस अनंत डोरे को साधारण धागा समझकर तोड़ दिया और फेंक दिया। इस अपराध के कारण उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वे दरिद्र हो गए। जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने प्रायश्चित करने का निश्चय किया और 14 वर्षों तक भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की। अंत में, भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और बताया कि यह सब उनके अपराध का फल है। भगवान ने उन्हें फिर से 14 वर्षों तक अनंत व्रत करने का आदेश दिया। कौण्डिन्य मुनि ने इस आदेश का पालन किया, जिसके बाद उन्हें उनकी खोई हुई समृद्धि और सुख वापस प्राप्त हुआ। यह कथा हमें बताती है कि अनंत पूजा का अपमान करने से व्यक्ति को कष्टों का सामना करना पड़ता है और यह व्रत श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है।अनंत पूजा भगवान विष्णु की अनंत शक्ति और कृपा का प्रतीक है।अनंत व्रत अनंत फल देने वाला माना गया है। जो व्यक्ति सच्चे मन से यह पूजा करता है, उसे जीवन में सुख, समृद्धि, धन और संतान की प्राप्ति होती है।कष्टों से मुक्ति: पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह व्रत व्यक्ति के सभी कष्टों और विपत्तियों को दूर करने में सहायक होता है ।अनंत चतुर्दशी के दिन चौदह गांठों वाला अनंत डोरा बांधा जाता है, जो भगवान विष्णु द्वारा रचित 14 लोकों का प्रतीक है। यह डोरा भक्तों को इन 14 लोकों की ऊर्जा और सुरक्षा प्रदान करता है।:अनंत पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन में विश्वास, धैर्य और ईश्वर के प्रति समर्पण का पाठ भी सिखाती है। यह व्रत हमें याद दिलाता है कि जब हम सच्चे मन से ईश्वर पर भरोसा करते हैं, तो वे हमारी हर समस्या का समाधान करते हैं और हमें जीवन में अनंत सुख और समृद्धि प्रदान करती है।
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