'नारी और विकासवाद': भारत की प्रगति की नई दिशा
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारत की विकास गाथा में, महिलाओं की भूमिका में एक बड़ा बदलाव आया है। पहले उन्हें केवल कल्याणकारी योजनाओं का लाभार्थी माना जाता था, लेकिन अब वे देश के आर्थिक और सामाजिक विकास की मुख्य धुरी बन गई हैं। 'नारी और विकासवाद' की यह अवधारणा महिलाओं को राष्ट्र निर्माण में एक सशक्त और सक्रिय भागीदार के रूप में स्थापित करती है। यह सिर्फ एक बदलाव नहीं, बल्कि एक क्रांति है, जो भारत की प्रगति को एक नई दिशा दे रही है।
विकास की शुरुआती अवधारणाओं में, महिलाओं को अक्सर एक निष्क्रिय भूमिका में देखा जाता था। 1950 के दशक में, यह माना जाता था कि विकास के लाभ अपने आप उन तक पहुंच जाएंगे। उन्हें केवल एक लाभार्थी के रूप में देखा जाता था, जिन्हें सहायता और कल्याणकारी योजनाओं की आवश्यकता होती थी। इस सोच का मुख्य कारण यह था कि महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों के बजाय घरेलू कामों तक ही सीमित माना जाता था।
1970 के दशक में, नारीवादी शोध ने इस धारणा को चुनौती दी। शोधकर्ताओं ने यह दिखाया कि महिलाएं अक्सर समाज में सबसे गरीब और कमजोर होती हैं और उन पर विकास का प्रभाव पुरुषों से अलग होता है। उन्होंने यह भी बताया कि केवल कल्याणकारी योजनाएं काफी नहीं हैं; महिलाओं को उनकी अपनी स्थिति सुधारने के लिए आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की आवश्यकता है।इस बदलाव के कारण, 'महिला एवं विकास' का दृष्टिकोण उभरा। इसका उद्देश्य महिलाओं को उत्पादक गतिविधियों में शामिल करना और उन्हें विकास परियोजनाओं में एकीकृत करना था। इसका मुख्य लक्ष्य उनकी उत्पादकता और कमाई को बढ़ाना था। यह दृष्टिकोण महिलाओं को निष्क्रिय लाभार्थी से एक सक्रिय आर्थिक एजेंट के रूप में देखने की दिशा में पहला कदम था।आज का आधुनिक दृष्टिकोण 'महिला-नेतृत्व वाले विकास' पर केंद्रित है। यह महिलाओं को केवल विकास परियोजनाओं में शामिल करने के बजाय, उन्हें नेतृत्व की भूमिका में स्थापित करने पर जोर देता है। इस दृष्टिकोण के तहत, महिलाएं सिर्फ विकास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे विकास का नेतृत्व कर रही हैं।
महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण उनके समग्र विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में, सरकार ने कई ऐसी पहल की हैं जिनसे महिलाओं की वित्तीय पहुंच बढ़ी है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और स्टैंड-अप इंडिया जैसी योजनाएं महिला उद्यमियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, जिससे वे अपने व्यवसाय शुरू कर सकें। डिजिटल साधनों तक पहुंच ने महिलाओं को आर्थिक निर्णय लेने में अधिक आत्मविश्वास दिया है।विश्व बैंक के अनुसार, यदि भारत अपनी महिला श्रम शक्ति भागीदारी को 50% तक बढ़ा दे, तो 2030 तक देश 8% की जीडीपी विकास दर और पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल कर सकता है। भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी बढ़कर 41.7% हो गई है, लेकिन अभी भी उन्हें अवैतनिक घरेलू काम और कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे दोहरे बोझ का सामना करना पड़ रहा है।महिलाएं समाज और संस्कृति की संरक्षिका होती हैं। वे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कृति, संस्कार और परंपराओं को हस्तांतरित करती हैं। महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण से न केवल उनका बल्कि पूरे परिवार का विकास होता है। एक सशक्त माँ अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और मूल्य दे सकती है, जिससे एक मजबूत और शिक्षित समाज का निर्माण होता है।भारत सरकार ने महिलाओं के विकास के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत, लाखों महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) में संगठित किया गया है। ये समूह महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता और सामाजिक सहयोग प्रदान करते हैं, जिससे वे छोटे व्यवसाय शुरू कर सकती हैं और अपने परिवार की आय में योगदान कर सकती हैं।इसके अलावा, 'नारी शक्ति अधिनियम' के तहत महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था की गई है, जिससे राजनीतिक क्षेत्र में भी उनका प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। राष्ट्रीय लिंगानुपात पहली बार 1020 हो गया है, जो महिला-पुरुष अनुपात में सुधार को दर्शाता है। बिहार सरकार की 'जीविका' परियोजना जैसी पहलें भी महिलाओं के चतुर्दिक विकास के लिए महत्वपूर्ण रही हैं।
"हमारा मानना है कि महिलाएं परिवर्तन की एक सशक्त शक्ति हैं।" यह कथन आज के भारत के लिए बिल्कुल सही है। भारत की विकास गाथा बदल रही है, जहाँ महिलाएं उच्च कार्यबल भागीदारी, उद्यमिता और वित्तीय पहुंच के माध्यम से आर्थिक विकास को आगे बढ़ा रही हैं। उन्हें सशक्त बनाना 'विकसित भारत 2047' की दृष्टि का एक केंद्रीय हिस्सा है।
पिछले 11 वर्षों में, भारत की नारी शक्ति ने विज्ञान, सैन्य सेवा, स्टार्टअप और शासन जैसे क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए हैं। आज, भारत की बेटियां, बहनें और माताएं नेतृत्व, नवाचार और नव-निर्माण की प्रतीक बन गई हैं।
'नारी और विकासवाद' की अवधारणा एक गतिशील यात्रा है जो महिलाओं को राष्ट्र निर्माण की मुख्य धारा में ला रही है। यह यात्रा न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए है, ताकि एक समावेशी, प्रगतिशील और सशक्त भारत का निर्माण हो सके, जहाँ कोई भी पीछे न रहे।
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