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माई दुर्गा जी अईलीं

माई दुर्गा जी अईलीं

अरुण दिव्यांश
माई दुर्गा जी आईल बानीं ,
हाथी के अबकी सवारी बा ।
अन्न धन सोना चाॅंदी रुपया ,
परिपूरन करे के तईयारी बा ।।
सूर्यदेव गईलीं माई बोलावे ,
माई आदिशक्ति तईयारी बा ।
माई आदिशक्ति हई दुर्गा माई ,
सादर हाथीए के सवारी बा ।।
भीतर जल्दी जल्दी सफाई ,
जल्दी सफाई होत बा बहरी ।
सगरो बा पावनता तईयारी ,
सफाई सुबह शाम दुपहरी ।।
आवत बाड़ी हमर दुर्गा माई ,
स्वागत में करे के तईयारी बा ।
नौ दिन के नौ परिचय मिली ,
सबके परिचय अब भारी बा ।।
सादर प्रणाम दुर्गा माई के ,
भक्त के आपन आशीर्वाद दीं ।
प्रणाम बा रउआ हर रूप के ,
कामना पूरन निर्विवाद दीं ।।
बिहारो के कर दीं परिपूरन ,
अन्न धन के खूब भण्डार दीं ।
हम बिहारी के रुके पलायन ,
बिहारे में सबके रोजगार दीं ।।
करिं कृपा बिहार पर अईसन ,
बिहार में रुके के आधार दीं ।
रोजी शिक्षा मिले बिहार में ,
रउआ सुखी संपन्न बिहार दीं ।।
यश कीर्ति मिले विकास वैभव के ,
मेहनत के फल साकार दीं ।
कामना पूरन करीं वैभव जी के ,
सुख आनंद के सुंदर आकार दीं ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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