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दुनिया को शिकायत है मुझसे ,

दुनिया को शिकायत है मुझसे ,

मुझे किसी से शिकायत नहीं ।
दूर कर ले तू अपनी शिकायत ,
आ गले मिल जा इनायत यही ।।
दूर हो जाऊॅं जीवन में तुमसे ,
कर सकता ये हिमाकत नहीं ।
बरकरार रहे लियाकत तुममें ,
बरकरार हममें लियाकत यही ।।
दूर कर ले दिले दर्द अपना तू ,
मैं भी अपना दर्द ये दूर करूॅं ।
बस जा तू अब मेरे ही दिल में ,
मैं भी कोशिश ये भरपूर करूॅं ।।
बन जा चाॅंद का शीतल चाॅंदनी ,
तो मैं नीचे आधार धरा बनूॅं ।
नहीं तुम बनो मुझसे ही बड़ा ,
नहीं मैं तुझसे कभी बड़ा बनूॅं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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