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कुछ कर ले तू कुछ धर ले ,

कुछ कर ले तू कुछ धर ले ,

जबतक है ये स्वस्थ शरीर ।
समय से गर तुम चुक गए ,
बने ही रहोगे तुम फकीर ।।
काम करो कुछ काम करो ,
जग में रहकर तू नाम करो ।
नहीं हो पाता तुमसे सुबह ,
यों ही बैठकर शाम करो ।।
कुछ दाऍं कुछ वाम करो ,
नहीं कुछ तो तुम धाम करो ।
नहीं संभव यह भी तुमसे ,
घूम घूम सबको प्रणाम करो ।।
कर लो संग्रह स्वस्थ शरीर से ,
जाने कब कैसे क्या हो जाए ।
हो जाए शरीर यह अस्वस्थ ,
या बिन किए जेल हो जाए ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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