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10 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दहेज प्रताड़ना मामले में पति, देवर और सास बरी

10 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दहेज प्रताड़ना मामले में पति, देवर और सास बरी

पटना। लगभग 10 वर्षों तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कंकड़बाग थाना कांड संख्या 255/2015 (जीआर नंबर 2430/2015) से जुड़े दहेज प्रताड़ना मामले में पटना सिविल कोर्ट के न्यायिक दंडाधिकारी, प्रथम श्रेणी मोहम्मद गुलाम रसूल ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनाते हुए आरोपित पति संतोष कुमार, देवर सनोज कुमार और सास श्रीमती ललिता देवी को दोषमुक्त करार दिया।

यह मामला भारतीय दंड संहिता की धाराओं 498ए, 504, 506, 323, 34 के तहत दर्ज किया गया था। अदालत ने पाया कि आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं थे।
अधिवक्ता का पक्ष

निर्दोष ठहराए गए संतोष कुमार की ओर से अधिवक्ता शिवानंद गिरि ने बताया कि संतोष की पत्नी ज्योति कुमारी ने अपने पति, देवर और सास के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराया था। इससे पूर्व वर्ष 2014 में भी ज्योति कुमारी ने इन्हीं पर दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था (कंकड़बाग थाना कांड संख्या 643/2014, जीआर नंबर 7740/2014)।

उन्होंने कहा कि अनुकंपा पर नौकरी के मुद्दे को लेकर पारिवारिक विवाद के कारण यह मुकदमे दर्ज कराए गए थे। संतोष कुमार ने अपने पिता (स्व. यदुनंदन राम), जो सीडीए बिल्डिंग, राजेंद्र पथ पटना में कार्यरत थे, की मृत्यु के बाद मिलने वाली नौकरी का अवसर अपने छोटे भाई को सौंप दिया था। इसी निर्णय से नाराज होकर पत्नी ने दो-दो मुकदमे दायर कर दिए।
ट्रायल की कार्यवाही

केस में सूचीका की ओर से तीन गवाह प्रस्तुत किए गए, जिनमें उसकी मां भी शामिल थीं। हालांकि, क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान सभी गवाह टूट गए। बचाव पक्ष ने अपने गवाहों के माध्यम से साबित किया कि घटना के दिन संतोष कुमार फतुहा में ड्यूटी पर मौजूद थे और घर पर नहीं थे।

अन्वेषण पदाधिकारी श्रीमती मीना कुमारी ने भी अदालत में स्वीकार किया कि सूचीका ने पहले भी दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था, लेकिन उन्होंने उस केस की जानकारी लेने का प्रयास नहीं किया।
अदालत का निर्णय और व्यापक संदर्भ

अदालत ने सभी साक्ष्यों व गवाहों के बयान पर विचार करने के बाद पति, देवर और सास को निर्दोष पाया और उन्हें बरी कर दिया।

अधिवक्ता शिवानंद गिरि ने कहा कि वर्तमान समय में दहेज प्रताड़ना के झूठे मुकदमों की बाढ़ आ गई है। ऐसे मामलों में निर्दोष पति और उनके परिवार को वर्षों तक सामाजिक कलंक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। इसलिए यह जरूरी है कि दहेज प्रताड़ना जैसे संवेदनशील मामलों में मुकदमा दर्ज करने से पहले गहन प्राथमिक जांच की जाए और केवल वही केस दर्ज किए जाएं जिनमें प्रथम दृष्टया साक्ष्य मजबूत हों।

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