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उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के

उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के 

निज स्वार्थ अस्ताचल बिंदु,
अंकुश व्यर्थ अभिलाषा ।
हृदयंगम प्रीत मनोरमा,
हर पल आनंद परिभाषा ।
लांघ कर नैराश्य देहरी,
समीप आशा उमंग पराग के ।
उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के ।।

क्रोध वैमनस्य मूल हरण,
आमंत्रण स्नेहिल मैत्री ।
तज शत्रुवत व्यवहार ,
पीर सरित पटल नेत्री।
कर्म धर्म नित फलीभूत,
सात्विकता सम प्रयाग के ।
उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के ।।

अबोध मन दिशाभ्रमित ,
वहन सहन कंटक शूल ।
प्रतिकार सदा अनैतिकता ,
प्रयोग साहस शौर्य त्रिशूल ।
आलिंगन यथार्थ चरित पट,
अविचलन दर्श मंचन काग के ।
उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के ।।

आत्मविश्वास परम सखा ,
नित्य प्रशस्त धवल पथ ।
सकारात्मकता ओज संग,
आरूढ़ बाधा संघर्ष रथ ।
प्रीति कल्पना साकार रूप ,
बस संकल्प वासना त्याग के ।
उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के ।।

कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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