महान गुरुवर चाटुकार
(एक व्यंग्यात्मक कविता)✍️ रचनाकार: -----
डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
गुरुघंटाल चले छाती तान,
कहें स्वयं को "बड़ा महान!"
साहित्य का मैं सिरमौर ज्ञाता,
मेरे जैसा नहीं कोई ध्याता।।
प्रधानमंत्री मुझको अच्छे से जानते,
मुख्यमंत्री दिलोजान से मानते।
राष्ट्रपति घर बुलाकर चाय पिलाते,
हम जैसे शिक्षकों पर जान लुटाते।।
जरूरत है जहां सिलेबस की हो पढ़ाई,
पढ़ाते चीन और पाकिस्तान की लड़ाई।
"सर, प्लीज़ हमें कुछ तो सही पढ़ाइए,
परीक्षा का बैठा डर मन से हटाइए।।
कहें – भारत अपना सदा महान,
बच्चों -- पहले सीखो सच्चा ज्ञान।
NCERT की पढ़ाई, है बच्चों का खेल,
कलम पकड़ो और, बन जाओ खुद रेल।।
पढ़ाने से क्यों लगता डर भारी ?
करते अधिकारियों की चाटुकारी।
DEO आए तो नास्ता-पानी लाएं,
BEO को मालिश खूब करवाएं।।
का शिक्षा-मित्र, का BPSC पास,
सब के सब बराबर, किस पर करूं आस।
कहें – "विद्यालय की मैं हूं जान!"
पर विद्यालय से विद्या हो गई वीरान।।
विद्यालय से नहीं कोई सरोकार,
पर मंत्री से रखते संबंध अपार।
MP साहब आपके जेब में सोए,
तो विधायक जी दर्शन वगैर रोएं।।
न पाठ्यक्रम की रहती कोई चिंता,
न बच्चों के प्रति दया और ममता।
कुर्सी पर दिन भर सजता दरबार,
ज्ञान गया लेने बाजार में कोल-तार।।
बेसिक नॉलेज में भी होता खेल,
पचास प्रतिशत शिक्षक फेल।
शिक्षक जब त्यागे जिम्मेदारी,
बढ़े चाटुकारिता की बीमारी।।
न ज्ञान बढ़े, न हो उद्धार,
कैसे होगा शिक्षा में सुधार?
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