धन संचय और दान पुण्य
जय प्रकाश कुवंरअसत्य को इस जीवन में समेटने में,
लोग सत्य को भुलाये जा रहे हैं।
दुनिया से जाना तो खाली हाथ है, पर
सब अपार धन जुटाये जा रहे हैं।।
अंत में तन पर केवल मामूली कफ़न रह जाएगा,
आज वस्त्रों से लदे मुस्कराये जा रहे हैं।
इस परम सच्चाई को जानते हुए भी,
कीमती वस्त्रों से आलमारियां सजाये जा रहे हैं।।
मुरख मन अब भी तो होश में आओ,
सब कुछ देने वाले उस परमात्मा का ध्यान धरो।
पाना सफल तब होगा जब देना सिखोगे,
धन संचय के साथ, अन्न धन वस्त्र भी दान करो।।
जो यहाँ बांटोगे, वही वापस पाओगे,
अन्यथा जीवन भर जमा करते रह जाओगे।
दान पुण्य के अभाव में, वहाँ खाली ही रहोगे,
यहाँ का जमा सब यहीं छोड़ चले जाओगे।।
तुम्हारे दरवाजे से अगर कोई भूखा चला जाएगा,
सोचो तुम्हारा संचय फिर काम किसके आएगा।
तुमसे दो रोटी पाकर, गरीब का पेट भर जाएगा,
तुम्हें दुआयें देगा और खुद निहाल हो जाएगा।।
बिना अभिमान दानी, सदा महान होते हैं,
समय समय पर ईश्वर, ऐसे दानी की परीक्षा लेते हैं।
धन संचय के साथ दान पुण्य चलता रहा, तो
परमपिता परमेश्वर भी, उसे आशीर्वाद देते हैं।।
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