पवन जायसवाल के बयान पर जीकेसी का विरोध
लेखक जितेन्द्र कुमार सिन्हा दिव्य रश्मि के उपसम्पादक है |
भारतीय राजनीति में समय-समय पर ऐसे बयान सामने आते रहते हैं, जो समाज के किसी वर्ग या समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को आहत कर जाता है। हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता पवन जायसवाल ने चित्रगुप्त जी महाराज के संबंध में कुछ टिप्पणियां कीं, जिसे लेकर कायस्थ समाज में गहरा रोष व्याप्त हो गया है। इस मामले पर ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस (जीकेसी) ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सार्वजनिक माफी की मांग की है।
भारतीय सनातन परंपरा में चित्रगुप्त जी का विशेष स्थान है। उन्हें कलम और लेखनी का देवता माना जाता है। वे धर्मराज यमराज के सहायक के रूप में प्रत्येक जीव के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। खासकर कायस्थ समाज चित्रगुप्त जी को अपने इष्टदेव के रूप में पूजता है। हर वर्ष दीपावली के दूसरे दिन ‘चित्रगुप्त पूजा’ बड़े उत्साह के साथ किया जाता है। ऐसे में चित्रगुप्त जी से जुड़ी कोई भी आपत्तिजनक या अवमाननापूर्ण टिप्पणी पूरे कायस्थ समाज की आस्था पर सीधा प्रहार माना जाता है।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा नेता पवन जायसवाल ने सार्वजनिक मंच से चित्रगुप्त जी को लेकर कुछ ऐसे कथन किए, जो कायस्थ समाज की भावनाओं के प्रतिकूल थे। इस बयान के बाद कायस्थ समाज में गुस्सा फैल गया और इसे धर्म और परंपरा का अपमान बताया गया।
इस मामले पर ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस (जीकेसी) के ग्लोबल उपाध्यक्ष सह बिहार प्रदेश अध्यक्ष दीपक अभिषेक ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जीकेसी इसका पुरजोर विरोध करता है और ऐसे असंवेदनशील बयान किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किए जा सकते। दीपक अभिषेक ने कहा कि चित्रगुप्त जी पर अनादरपूर्ण टिप्पणी करने वाले व्यक्ति को सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए, अन्यथा कायस्थ समाज इसे बड़ा मुद्दा बनाएगा।
कायस्थ समाज लंबे समय से अपनी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक आस्थाओं की रक्षा के लिए सक्रिय रहा है। चाहे मामला चित्रगुप्त पूजा का हो या समाज के सम्मान का, कायस्थ समाज हमेशा एकजुट होकर आवाज उठाता आया है। इस प्रकरण ने एक बार फिर दिखा दिया कि जब भी इष्टदेव या धार्मिक मान्यताओं पर चोट होती है, तो पूरा समाज साथ खड़ा हो जाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़े विषयों पर बोलते समय नेताओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। उनकी एक गलती न केवल राजनीतिक विवाद खड़ा करती है बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था को भी ठेस पहुंचाती है। पवन जायसवाल के इस बयान ने यही साबित किया कि लोकप्रियता पाने की जल्दी में अक्सर नेता शब्दों की मर्यादा भूल जाते हैं।
कायस्थ समाज की मांग है कि पवन जायसवाल अपने बयान के लिए शीघ्र ही सार्वजनिक रूप से माफी मांगें और स्पष्ट करें कि उनका उद्देश्य समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। अन्यथा यह विवाद और गहराता जाएगा। यह घटना नेताओं के लिए भी एक सीख है कि धार्मिक आस्थाओं का सम्मान सर्वोपरि है, क्योंकि इन्हीं आस्थाओं से समाज की एकता और विश्वास कायम रहता है।
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