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इतिहास की परतें खुलेंगी धीरे धीरे,

इतिहास की परतें खुलेंगी धीरे धीरे,

सत्य से धूल की चादर हटेगी धीरे धीरे।

ली है अंगड़ाई हिन्दू ने अभी थोड़ी थोड़ी,

नींद से भी सनातन जगेगा धीरे धीरे।

क्या-क्या लिखा इतिहास मे, किसने लिखा,

हारे सिकन्दर का गौरव गान, किसने लिखा?

किसने बताया भारत को, अनपढ़ गँवारों का,

भूखा नंगा पिछड़ा था भारत, किसने लिखा?

ज्ञान का था केन्द्र भारत, विश्व जान रहा है धीरे धीरे,

विज्ञान की पराकाष्ठा यहाँ, पहचान रहा है धीरे धीरे।

सभ्यता विकसित हुई सर्वप्रथम जहॉं, वह भारत था,

अध्यात्म से जीवन मृत्यु आत्मा, मान रहा है धीरे धीरे।


किसने बताई सूर्य की दूरी है कितनी,

हनुमान चालीसा में लिखी बस उतनी।

अग्नि बाण परमाणु मिसाईल की खोज,

रामायण महाभारत में लिखी बात इतनी।


देखिए जाकर अभी सनातन मन्दिरों मे,

हज़ारों साल पहले उकेरे चित्र मन्दिरों में।

गर्भ में भ्रूण, प्रत्येक माह की प्रगति क्या,

सदियों पहले विश्व को दिखाया मन्दिरों में।

मुग़लों ने जलाया साहित्य, कुछ ले गये,

अंग्रेजों ने मिटाया सच, झूठ सब दे गये।

आज़ादी के बाद सत्ता ने खेल खेला घिनौना,

सनातन को बिसराकर, जातियों मे खे गये।

हट रही हैं झूठ की चादरें, सत्य से धीरे धीरे,

फैल रहा धर्म- अध्यात्म का परचम धीरे धीरे।

कब तलक धूल और कोहरे की चादर रहेगी,

तम सिमट रहा, हो रही है सुबह भी धीरे धीरे।

इतिहास की परतें फिर खुलेंगी, धीरे धीरे,

इस्लाम का सच भी फिर सामने, धीरे धीरे।

हैं बहुत से काले पन्ने, जो छिपा दिए गए,

उन पर भी रोशनी फिर से पड़ेगी, धीरे धीरे।

जिसने गढ़ा था मन्दिरों को, कौन थे,

ज्ञान का संचार करते, ऋषि कौन थे?

मृत्यु के बाद जीवन, जग को बताया,

सच के उपर झूठ की परतें, कौन थे?

हमने जगत को जीरो दी, काल साक्षी,

शब्द का ज्ञान- विज्ञान भी, काल साक्षी।

क्या है धरा क्या गगन, सप्त लोक क्या,

प्रकृति को भगवान माना, काल साक्षी।

दौड़ते थे ब्रह्म लोक तक, मुनिवर यहाँ,

ध्यान और विज्ञान पढ़ते, मुनिवर यहाँ।

ब्रह्माण्ड के रहस्यों से पर्दा उठाते सदा,

अध्यात्म से मुक्ति बताते, मुनिवर यहाँ।

भू गगन वायू अग्नि नीर को, भगवान माना,

पीपल- बरगद सार समझा, भगवान माना।

मानव के भीतर मानवता, दानव को समझा,

इस धरा के हर रज कण को, भगवान माना।

पाप की परतें खुलेंगी, धीरे धीरे,

झूठ से परदा हटेगा, धीरे धीरे।

सच कब छिपा सामने आयेगा,

तम मिटेगा भोर होगा, धीरे धीरे।

जो छिपा अब तलक, सब खुलेगा,

भेद घर का भेदियों से, सब खुलेगा।

शान्त जल में कंकरें फैंके हैं तुमने,

लहरियों का वेग कितना, सब खुलेगा।

कौन रक्षक कौन भक्षक, सामने सब आयेगा,

सत्य विचलित पर पराजित, हो नहीं पायेगा।

मान अपमान सम्मान, आकलन करना होगा,

दोषियों की जाँच, कोई बख्शा नहीं जायेगा।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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