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मनमानी चलन

मनमानी चलन

जय प्रकाश कुवंर
ना कवनो हांक बा, ना कवनो डांट बा।
सब लोग अपना मन के बादशाह बा।
गार्जियन तो अब केहू जानते नइखे।
बड़ छोट तो अब केहू मानते नइखे।।
बाप से बेटा मुंह लड़ावत बाड़े।
मन माफिक ना भ‌इला पर, 
बाप के धमकावत बाड़े।।
घर के इज्जत बाजार में उछालल जात बा।
निमनो बात अब केहू से ना सहात बा।।
आपन घर ठीक से अब सम्भलाते नइखे।
समाज कैसे ठीक से सम्भालल जाई।।
बड़ा बिकट समस्या समाज में खड़ा हो ग‌इल बा।
खाली बतकही से हल ना निकले पाई।।
हर घर, गाँव, समाज में बा मुश्किल के घड़ी।
सब लोग के आपन जिद्द टेक तोड़े के पड़ी।।
बिना जिद्द छोड़ले, कवनो बात आगे ना बढ़ी।
छोटका बड़का सबका एक दिन पछतावे के पड़ी।।
आज का समय में केहू छोट न‌इखे, केहू बड़ न‌इखे,
सब लोग एक समान बा।
सुख दुख में, प्रेम मैत्री से जब सब लोग रहे लागी,
ओही दिन धरती पर सफल इंसान बा।। 
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