"मौन का सामर्थ्य"
सृष्टि का शाश्वत विधान है कि सृजन निःशब्द एवं विनाश घोषपूर्ण होता है। बीज का अंकुरण धरित्री की गोद में मूकता के साथ होता है, किंतु वृक्ष का पतन दिशाओं को कंपित कर देता है। इस प्रकार, विनाश का स्वर विकट होता है, किन्तु सृजन की गति मृदु एवं मौन। यही सत्य मानव जीवन पर भी लागू होता है—आत्मविकास, साधना और चरित्र-निर्माण कोलाहल में नहीं, अपितु मौन की गहन नीरवता में फलित होते हैं।
मौन कोई शून्यता नहीं, बल्कि सृजनात्मक शक्ति का संवाहक है। जैसे दीपक की लौ बिना शोर किए अंधकार को दूर करती है, वैसे ही मौन साधना का आलोक जीवन को दिशा देता है। आडम्बर एवं शोर क्षणिक हैं, जबकि मौन साधना स्थायित्व एवं गहराई प्रदान करती है। अतः जीवन में यदि स्थायी महानता एवं सार्थकता चाहिए, तो आवश्यक है कि हम मूक उन्नयन का मार्ग अपनाएँ—क्योंकि मौन ही वास्तविक सामर्थ्य का आधार है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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