Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

'नेताओं का नया धर्म: गाली, महंगाई और परिवारवाद'

'नेताओं का नया धर्म: गाली, महंगाई और परिवारवाद'

सत्येन्द्र कुमार पाठक
आज का दौर बड़ा अजीब है। एक तरफ हम डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी की बातें करते हैं, तो दूसरी तरफ हमारी राजनीति का स्तर गटर से भी नीचे जा रहा है। हमारे नेतागण, जो कभी समाज के मार्गदर्शक हुआ करते थे, अब भ्रष्टाचार, महंगाई और परिवारवाद जैसी बुराइयों के सबसे बड़े पुजारी बन गए हैं। वे इन बुराइयों को ऐसे पूजते हैं जैसे ये कोई महान पर्व हों। इन्हीं नेताओं के कारण आज देश में हर जगह 'गाली', 'भ्रष्टाचार', 'महंगाई', 'परिवारवाद', 'क्षेत्रवाद' और 'जातिवाद' का नारा गूंज रहा है। इस 'महापर्व' को मनाने वालों में एक प्रमुख चेहरा है, गोलू। गोलू सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि आज की राजनीति का प्रतीक है। वह हर बात में 'भ्रष्टाचार', 'महंगाई' और 'परिवारवाद' का नारा लगाता है। उसकी जुबान पर गाली ऐसे चिपकी रहती है, जैसे किसी भिखारी के कपड़े पर धूल। वह गालियों की बौछार करके भ्रष्टाचार और महंगाई को बढ़ावा देता है। गोलू की सोच है कि गालियां ही वह हथियार हैं, जिनसे वह राजनीति की जंग जीत सकता है।
गोलू का एक भाई है मंटू, जो भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा पोषक है। वह मानता है कि भ्रष्टाचार ही विकास की असली कुंजी है। उसकी नजर में, जो नेता भ्रष्टाचार नहीं करता, वह मूर्ख है। दूसरा भाई है फेकू, जो महंगाई का पोषक है। वह कहता है कि महंगाई जितनी बढ़ेगी, देश उतना ही तरक्की करेगा। वह महंगाई को 'विकास का इंजन' कहता है।
गोलू, मंटू और फेकू के कारनामों से परेशान होकर एक सीधा-साधा इंसान, संतू, बेचैन हो उठता है। संतू राष्ट्रवाद, सत्य और कर्म का पुजारी है। वह भ्रष्टाचार, महंगाई और जातिवाद से त्रस्त है। वह गोलू से कहता है, "भाई, ये सब छोड़ दो। ये कुप्रचार, महंगाई, भ्रष्टाचार, जातिवाद, क्षेत्रवाद और गाली-गलौज तुम्हें कहीं नहीं ले जाएगी। राष्ट्रवाद, समाजवाद और इंसानियत को अपनाओ। आजादी हमें इसलिए नहीं मिली थी कि हम एक-दूसरे को नीचा दिखाएं, बल्कि इसलिए मिली थी कि हम अच्छे काम करें और देश को आगे बढ़ाएं।"गोलू संतू की बात सुनकर हंसता है। वह कहता है, "तुम संतू ही रह गए। मेरे इन कामों से नेता, मंत्री, व्यापारी और मेरा परिवार सब खुश हैं। राष्ट्रवाद और समाजवाद से हमें क्या मिलेगा? तुम समाज सेवा और राष्ट्रवाद को भजते रहो, इससे तुम्हारा पेट नहीं भरेगा।" संतू और गोलू के बीच बहस छिड़ जाती है। इसी बीच, दो और समझदार लोग, राम और श्याम, वहां आते हैं। वे संतू की बातों का समर्थन करते हुए गोलू से कहते हैं कि वह अपने जीवन में सच्चाई और ईमानदारी को अपनाए। लेकिन गोलू उनकी भी बात नहीं सुनता। तब संतू, राम और श्याम ने गोलू से कहा, "तुम समाज में बिखराव पैदा कर रहे हो। तुम भाईचारे और एकता को खंडित कर रहे हो। तुम गांव छोड़ दो, नहीं तो इसका बुरा अंजाम होगा।" जब गोलू ने यह बात सुनी तो वह घबरा गया। उसे लगा कि अब उसे कोई नहीं बचा सकता। उसके भ्रष्ट कामों से तंग आकर गांववालों ने उसे गांव छोड़ने को कह दिया था। अंत में, गोलू को अपने परिवार के साथ गांव छोड़कर भागना पड़ा। यह कहानी आज के समाज और राजनीति का कड़वा सच है। हमें यह समझना होगा कि भ्रष्टाचार, महंगाई और परिवारवाद से देश का भला नहीं हो सकता। हमें अपने नेताओं को बताना होगा कि वे इन कुरीतियों को छोड़ें और समाज में सद्भाव, भाईचारा और एकता को बढ़ावा दें। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो आज नहीं तो कल, हमें भी गोलू की तरह इन बुराइयों का अंजाम भुगतना पड़ेगा।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ