शिक्षकों का सम्मान भारतीय परंपरा और संस्कृति का समादर : नन्द किशोर यादव

- साहित्य सम्मेलन में नई दिशा परिवार के सौजन्य से ३१ गुरुओं का हुआ सम्मान, स्मरण किए गए पूर्व राष्ट्रपति , पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद को दिया गया जीवन उपलब्धि सम्मान
पटना, २ सितम्बर। नया समाज गढ़ने वाले आदरणीय शिक्षकों का सम्मान, वस्तुतः भारत की महान परंपरा और संस्कृति का ही समादर है। शिक्षक ही छात्र-छात्राओं को गढ़ते हैं और उन्हें समाज के मूल्यवान नागरिक बनाते हैं। एक गुणी शिक्षक ही चरित्रवान और गुणवान नागरिक तैयार कर सकते हैं। इसीलिए ये हर काल में महान बताए गए हैं।
ये बातें मंगलवार को, सामाजिक-सांस्कृतिक-संस्था 'नई दिशा परिवार' के तत्त्वावधान में, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित शिक्षक-सम्मान-समारोह का उद्घाटन करते हुए, बिहार विधान सभा के अध्यक्ष नन्द किशोर यादव ने कही। उन्होंने कहा कि समाज बहुत तेज़ी से बदल रहा है। ऐसे में शिक्षाकों को भी अपनी प्रणाली में परिवर्तन लाना चाहिए।
समारोह के मुख्य अतिथि और सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने कहा कि भारत में शिक्षाकों का सदैव सम्मान होता रहा है, क्योंकि इनके ऊपर नयी पीढ़ी का गुरुत्तर दायित्व होता है। ये अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले समाज के रीढ़ होते हैं।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि भारतीय संस्कृति मेन ज्ञान-परंपरा 'गुरु-परंपरा' पर आधारित है। विद्यार्थियों को शिक्षा विशाल परिसरों में बने बड़े-बड़े भवन अथवा दीवारें या वातानुकूलित कक्षाएँ नहीं, योग्य और निष्ठावान आचार्यों से प्राप्त होगी। शिक्षक होना, संसार में कुछ भी होने से बड़ा होना है। देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी पैर छूकर प्रणाम केवल उनके परिजन अथवा वे करते हैं, जिन्हें उनसे किसी प्रकार के लाभ की आशा होती है। किंतु एक शिक्षक को पैर छूकर प्रणाम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी कर्ते हैं। प्रत्येक शिक्षक को यह सोचना होगा कि वे देश के भविष्य के निर्माता हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री राम कृपाल यादव, पूर्व कुलपति प्रो के सी सिन्हा, पटना की उपमहापौर रेशमी च्न्द्रवंशी, सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा दिवाकर तेजस्वी और कमल नयन श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत संस्था के संरक्षक राजेश वल्लभ यादव ने तथा मंच का संचालन संस्था के सचिव राजेश राज ने किया।

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