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माँ कात्यायनी

माँ कात्यायनी

✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"

धरती जब कांपी, अंबर डोला,

अधर्म ने जब रौंदा टोला।

तब जननी ने रूप लिया,

कात्यायनी बन क्रोध वे पिया।।


कात्य ऋषि की तप की धारा,

दुनियां देखी उसका नज़ारा।

तेरे आँचल में ब्रह्मांड समाया,

तेरी कृपा से अंधकार मिटाया।।


नयनों में ज्वाला, मुख पर शांति,

तेरी छाया से मिटे विपत्ति की क्रांति।

कर में खड्ग, करुणा भी साथ,

तू ही तो करती जग का उद्धार।।


सिंह सवारी, रण की रानी,

रक्तबीज को किया कहानी।

जो भी शरण तेरी आए,

माँ, तू उसका जीवन संवारे।।


भूलों का तू करती संशोधन,

भक्तों को देती दिव्य बोधन।

प्रेम से जो तुझको पुकारे,

माँ,तू उसकी सुध अवश्यम्भावे।।


ओ माँ कात्यायनी, शक्ति स्वरूपा,

जगजननी, तू ही हमारी भूखा।

बिना कहे ही जान लेती मन की बात,

तेरे चरणों में मिलती हर सौगात।।


तेरी भक्ति में भीगे नयन,

जीवन मेरा हो माँ, मेरा धन।

दया कर, शक्ति दे, बुद्धि दे माँ,

हम सबको अपना कर ले माँ।।

🙏जय मां कात्यायनी 🙏

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