भगवान विश्वकर्मा: सृष्टि के रचयिता और शिल्प कला के देवता
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भगवान विश्वकर्मा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अत्यंत महत्वपूर्ण देवता हैं, जिन्हें सृष्टि के रचयिता और देवताओं के शिल्पकार के रूप में पूजा जाता है। उनका उल्लेख वेद, पुराण और महाभारत जैसे प्रमुख हिंदू ग्रंथों में मिलता है। उन्हें सभी कलाओं, शिल्पों और वास्तुकला का आदि देव माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न कथाएं मिलती हैं। कुछ पुराणों में उन्हें ब्रह्मा का पुत्र बताया गया है, जबकि अन्य में उन्हें प्रजापति वास्तुदेव और देवगर्भा का पुत्र माना जाता है। भूलोक में उनके जन्म की एक कथा के अनुसार, उनका जन्म वास्तुदेव और अंगिरसी के घर हुआ, जहाँ उन्होंने अपने माता-पिता से शिल्प और वास्तुकला का ज्ञान प्राप्त किया।उनके पांच प्रमुख पुत्र थे: मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ, जिन्हें अलग-अलग शिल्पों का ज्ञाता माना जाता है। मनु को लोहार, मय को बढ़ई, त्वष्टा को तांबे का काम करने वाला, शिल्पी को मूर्तिकार और देवज्ञ को सुनार माना जाता है। उनकी एक पुत्री का नाम संज्ञा था, जिनका विवाह सूर्य देव से हुआ था। विश्वकर्मा की पत्नी के रूप में आकृति, रति, प्राप्ति और नंदी का उल्लेख भी मिलता है।भगवान विश्वकर्मा अपने असाधारण शिल्प कौशल के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने देवताओं के लिए कई अद्भुत भवनों, अस्त्रों और शस्त्रों का निर्माण किया। उनके कुछ प्रमुख निर्माण कार्य इस प्रकार हैं:स्वर्गलोक और देव महल: उन्होंने देवताओं के निवास स्थान, स्वर्गलोक का निर्माण किया, जिसमें इंद्र का महल भी शामिल है। अस्त्र और शस्त्र: उन्होंने इंद्र के लिए वज्र, भगवान शिव के लिए त्रिशूल और भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र जैसे शक्तिशाली अस्त्रों का निर्माण किया। नगरों का निर्माण: उन्होंने सोने की लंका, भगवान कृष्ण के लिए द्वारका नगरी और पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया। रथ और विमान: उन्होंने देवताओं के लिए रथों का निर्माण किया, साथ ही पुष्पक विमान का भी निर्माण किया, जिसका उपयोग रावण कराया था ।विश्वकर्मा की पूजा विशेष रूप से उद्योगों, कारखानों और विभिन्न शिल्पों से जुड़े लोगों द्वारा की जाती है। यह पूजा हर साल 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाई जाती है। इस दिन कारीगर, इंजीनियर, मजदूर और शिल्पकार अपने औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं, ताकि उनके काम में समृद्धि और कुशलता बनी रहे।भारत में कई स्थानों पर विश्वकर्मा मंदिर स्थापित हैं, जैसे दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड में। ये मंदिर उनके भक्तों के लिए प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, जहाँ वे शिल्प और कला के इस महान देवता का सम्मान करते हैं। विश्वकर्मा जी का महत्व सिर्फ पौराणिक कथाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि वे मेहनतकश लोगों के लिए प्रेरणा और समर्पण का प्रतीक भी हैं।
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