(शारदीय नवरात्र __सप्तम)
हे कालरात्रि कल्याणी,तेरे जैसा जग में कोई नहीं
कुमार महेन्द्र
रूप विकराल रुद्र श्रृंगार,
छटा अद्भुत अनूप मनोहारी ।
सघन तिमिर सम वर्णा दर्शन,
साधक जन अति शुभकारी ।
संपूर्ण ब्रह्मांड सिद्धि वृष्टि,
अनंत खुशियां पटल मही ।
हे कालरात्रि कल्याणी, तेरे जैसा जग में कोई नहीं ।।
महायोगीश्वरी महायोगिनी शुभंकरी,
मां कालरात्रि अन्य नाम ।
रौद्र छवि अप्रतिम झलक,
दानवी शक्ति काम तमाम ।
शुम्भ निशुम्भ रक्त बीज संहार,
देवलोक अग्र पद काज सही ।
हे कालरात्रि कल्याणी, तेरे जैसा जग में कोई नहीं ।।
चार भुजा त्रिनेत्र विशाल ,
कर खड़ग लौह अस्त्र धारी ।
गर्दभारुढा अभय वर मुद्रा,
सदैव भक्तजन हितकारी ।
शत्रु विजय दृढ़ संकल्प पथ,
मां भक्ति शक्ति सदा अपार रही ।
हे कालरात्रि कल्याणी, तेरे जैसा जग में कोई नहीं ।।
नील वर्ण प्रिया माता,
भय रोग संताप हरण ।
भूत प्रेत अकाल मृत्यु,
सहज समाधान श्री चरण ।
महासप्तमी परम साधना,
सुख समृद्धि वैभव वर कही ।
हे कालरात्रि कल्याणी, तेरे जैसा जग में कोई नहीं ।।
*कुमार महेन्द्र*
(स्वरचित मौलिक रचना)
दिनांक 28/09/2025


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