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शक्ति उपासना: नवरात्रि, ऐतिहासिक धरोहरें और वैज्ञानिक महत्व

शक्ति उपासना: नवरात्रि, ऐतिहासिक धरोहरें और वैज्ञानिक महत्व

सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म और शाक्त संप्रदाय में शक्ति की उपासना का एक गहरा और महत्वपूर्ण स्थान है। शारदीय नवरात्रि, जो प्रतिपदा को शुरू होती है, इन्हीं उपासनाओं का प्रमुख पर्व है। यह नौ दिवसीय उत्सव देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री - की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। इन नौ दिनों में किया गया पूजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसका वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व भी है
नवरात्रि का शुभारंभ घट स्थापना या कलश स्थापना से होता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, कलश को सुख, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कलश के मुख में भगवान विष्णु, कंठ में रुद्र और मूल में ब्रह्मा का निवास होता है, जबकि मध्य में दैवीय मातृशक्तियाँ विराजमान होती हैं। कलश स्थापना के माध्यम से ब्रह्मांड में व्याप्त शक्ति तत्व का आवाहन किया जाता है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक तरंगें नष्ट होती हैं। घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश सबसे उत्तम माना गया है, जिसमें गंगाजल, मौली, सुपारी, पंचरत्न, आम के पत्ते, सिक्के और नारियल जैसी सामग्री रखी जाती है। नारियल को कलश के ऊपर इस तरह रखा जाता है कि उसका मुख साधक की ओर रहे, क्योंकि शास्त्रों में नारियल का मुख अलग-अलग दिशाओं में रखने के नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख है। कलश स्थापना के बाद, माता की चौकी स्थापित की जाती है और अखंड ज्योत जलाई जाती है, जो पूरे नौ दिन तक जलती रहती है। इस दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करना और नौ दिनों का व्रत रखना विशेष फलदायी माना गया है।
नवरात्रि केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसका गहरा वैज्ञानिक महत्व भी है। यह पर्व साल में दो बार (चैत्र और आश्विन मास) ऋतु परिवर्तन के संधिकाल में आता है। इस समय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और मानसिक स्थिति में भी बदलाव आता है। व्रत और पूजा-पाठ के माध्यम से शरीर और विचारों की शुद्धि होती है, जिससे व्यक्ति स्वस्थ और ऊर्जावान महसूस करता है। इस दौरान लहसुन और प्याज जैसे तामसी भोजन से परहेज किया जाता है, क्योंकि वे कामुक ऊर्जा को बढ़ाते हैं और ध्यान में बाधा डालते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, लहसुन और प्याज राक्षसों (राहु और केतु) के अमृत की बूंदों से उत्पन्न हुए थे, इसलिए उन्हें पूजा-पाठ में अपवित्र माना जाता है।
हवन और यज्ञ करने से वातावरण शुद्ध होता है, जिससे मानसिक शांति और विचारों में पवित्रता आती है। नवरात्रि के दौरान देवी मंदिरों के परिसर में नीम और समी के पेड़ लगाने का भी महत्व है, जो नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करते हैं और सकारात्मकता लाते है।
बिहार के अरवल जिले में स्थित करपी एक ऐसा स्थल है जो प्राचीन काल से ही शाक्त धर्म और सौर धर्म का केंद्र रहा है। इतिहासकार और साहित्यकार सत्येन्द्र कुमार पाठक के अनुसार, करपी का नाम पहले कारुषी था और यह वैवस्वत मनु के पुत्र राजा करूष द्वारा स्थापित किया गया था। इस क्षेत्र में गंगा, सोन और वैदिक नदी हिरण्यबाहु (आधुनिक बह) का संगम था।करपी में स्थापित जगदम्बा मंदिर, शिव लिंग, चतुर्भुज भगवान और शिव-पार्वती की मूर्तियाँ महाभारत कालीन मानी जाती हैं। खुदाई में मिली ये प्राचीन मूर्तियाँ इस क्षेत्र के समृद्ध इतिहास का प्रमाण हैं। यहाँ चार मठ भी थे, जिन्हें स्थानीय लोग मठिया कहते हैं, जो चारों दिशाओं में स्थापित थे। यह क्षेत्र न केवल शाक्त बल्कि सौर धर्म का भी केंद्र था, जहाँ राजा हर्षवर्धन के काल (606 ई.) में सूर्योपासना होती थी। एक और महत्वपूर्ण स्थान है गया जिले का केसपा गाँव, जहाँ माँ तारा देवी का मंदिर स्थित है। इसे लोक आस्था और शक्तिपीठ का केंद्र माना जाता है। यह स्थल महर्षि कश्यप मुनि की साधना स्थली थी, जिन्होंने स्वयं इस मंदिर का निर्माण करवाया था। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला और भगवान शिव ने उसे पीकर अपने कंठ में धारण कर लिया, तो वे अर्ध-निद्रा में चले गए। उस समय माता तारा प्रकट हुईं और शिव को बालक की तरह गोद में उठाकर अपना दूध पिलाया, जिससे उनकी मूर्छा टूट गई। इसी कारण माता तारा को भगवान शिव की मां भी कहा जाता है। केसपा मंदिर में स्थापित माँ तारा की आठ फीट ऊँची काले पत्थर की मूर्ति और उसकी भव्य नक्काशी भक्तों को आकर्षित करती है।
नवरात्रि का पर्व शक्ति उपासना, आस्था और वैज्ञानिकता का एक अनूठा संगम है। यह न केवल हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है, बल्कि जीवन को शुद्ध, सकारात्मक और स्वस्थ बनाने का संदेश भी देता है। बिहार के करपी और केसपा जैसे ऐतिहासिक स्थल इस बात के प्रमाण हैं कि भारत की धरती पर प्राचीन काल से ही इन परंपराओं की जड़ें कितनी गहरी हैं, जो आज भी लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई हैं। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि मानसिक और शारीरिक शुद्धि के बिना किसी भी तरह की सफलता या आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है।
मुंडेश्वरी मंदिर, बिहार - बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी मंदिर , रोहतास जिले का तुतला भवानी मंदिर को भारत का सबसे प्राचीन और निरंतर सक्रिय हिंदू मंदिर माना जाता है। यह मंदिर लगभग 108 ईस्वी में स्थापित हुआ था। इसकी अनोखी अष्टकोणीय वास्तुकला इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। मंदिर के अंदर एक चतुर्मुख शिवलिंग स्थापित है, जो भगवान शिव की सर्वव्यापी प्रकृति को दर्शाता है। यहाँ रक्तहीन बलि की एक अनूठी परंपरा भी है।कैलाश मंदिर, एलोरा (महाराष्ट्र)।महाराष्ट्र में एलोरा की गुफाओं में स्थित कैलाश मंदिर एक चट्टान को काटकर बनाया गया एक अद्भुत स्मारक है। यह 8वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट वंश के शासक कृष्ण प्रथम द्वारा बनवाया गया था। इसे पूरी दुनिया में एक ही पत्थर से बनी सबसे बड़ी संरचनाओं में से एक माना जाता है। इसकी जटिल नक्काशी और भव्यता आज भी लोगों को आश्चर्यचकित करती है। बादामी गुफा मंदिर, कर्नाटक कर्नाटक के बादामी में स्थित ये मंदिर 6वीं शताब्दी में बनाए गए थे। ये चार गुफा मंदिर हैं, जिनमें से तीन हिंदू देवताओं (शिव और विष्णु) को समर्पित हैं और एक जैन तीर्थंकरों को। ये मंदिर चालुक्य वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरण हैं।
बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर (तमिलनाडु) मंदिर 11वीं शताब्दी में चोल शासक राजाराज प्रथम द्वारा बनवाया गया था। यह पूरी तरह से ग्रेनाइट से बना है और इसे दुनिया का पहला ग्रेनाइट मंदिर माना जाता है। यह अपनी शानदार वास्तुकला और इंजीनियरिंग के लिए प्रसिद्ध है। तमिलनाडु में 7वीं-8वीं शताब्दी में पल्लव राजवंश द्वारा निर्मित तमिलनाडु के महाबलीपुरम में शोर मंदिर बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है। यह द्रविड़ वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है। इन मंदिरों के अलावा भी भारत में कई अन्य प्राचीन मंदिर हैं,। सोमनाथ मंदिर, गुजरात , लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर, ओडिशा , कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा ,श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर, तमिलनाडु ,ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर, राजस्थान
ये सभी मंदिर न केवल धार्मिक स्थल हैं, बल्कि हमारे इतिहास और संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से हैं जो भारतीय स्थापत्य कला और इंजीनियरिंग की महानता को दर्शाते हैं।देवी भागवत पुराण के अनुसार, शक्ति पीठ वे पवित्र स्थल हैं जहाँ देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। जब उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, तो सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। दुख से व्याकुल शिव ने सती के शव को अपने कंधे पर उठाया और 'तांडव' करने लगे। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया, जो पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर गिरे। ये स्थान ही शक्ति पीठ कहलाए। प्रत्येक शक्ति पीठ में देवी के एक रूप और भगवान शिव के एक रूप की पूजा होती है।भारत में कुल 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं, जिनमें से कुछ सबसे प्रसिद्ध हैं:कामाख्या मंदिर, असम: यह सबसे प्रसिद्ध शक्ति पीठों में से एक है, जहाँ देवी सती की योनि गिरी थी।ज्वालामुखी मंदिर, हिमाचल प्रदेश: यहाँ देवी की जीभ गिरी थी। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहाँ कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि नौ ज्वालाएँ लगातार जलती रहती हैं, जिन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है।वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू और कश्मीर: यह एक और प्रसिद्ध शक्ति पीठ है, जहाँ देवी का सिर गिरा था।कालिका शक्ति पीठ, कोलकाता: यहाँ सती की दाईं उंगलियाँ गिरी थीं।अंबा जी मंदिर, गुजरात: यहाँ देवी का हृदय गिरा था।मंगल गौरी, गया, बिहार: यहाँ देवी का वक्षस्थल गिरा था।भारत के अलावा, कुछ शक्ति पीठ पड़ोसी देशों में भी स्थित हैं:हिंगलाज माता मंदिर, बलूचिस्तान, पाकिस्तान: यह शक्ति पीठ कराची से लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित है और यहाँ देवी का सिर गिरा था।शारदा पीठ, मुजफ्फराबाद, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर: यहाँ सती का बायाँ हाथ गिरा था।जेस्सोरेश्वरी काली मंदिर, बांग्लादेश: यहाँ देवी की हथेली गिरी थी।नेपाल में गुह्येश्वरी मंदिर और दंतेश्वरी मंदिर: नेपाल में भी कई शक्ति पीठ हैं।शक्ति की पूजा करने वाले अन्य प्रसिद्ध मंदिर।शक्ति पीठों के अलावा, भारत में कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिर हैं जहाँ शक्ति की पूजा होती है:दक्षिणेस्वर काली मंदिर, कोलकाता: यह मंदिर देवी काली को समर्पित है और आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस से जुड़ा है। चामुंडेश्वरी मंदिर, मैसूर, कर्नाटक: यह मंदिर देवी चामुंडेश्वरी को समर्पित है, जिन्होंने राक्षस महिषासुर का वध किया था। मीनाक्षी अम्मन मंदिर, मदुरै, तमिलनाडु: यह मंदिर देवी पार्वती (मीनाक्षी) और उनके पति भगवान सुंदरेश्वर को समर्पित है। करपी जगदंबा मंदिर, बिहार: यह एक प्राचीन मंदिर है जो शक्ति पूजा का केंद्र रहा है। इन सभी मंदिरों में, देवी शक्ति को ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति के रूप में पूजा जाता है, जो जीवन को सृजित करती है, उसका पोषण करती है और उसका संहार भी करती है।
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