"चमड़ी जाए तो जाए मगर दमड़ी न जाए"
सुरेन्द्र कुमार रंजन
उज्जैन शहर में फकीरचंद नामक एक सेठ रहता था। उसकी पत्नी दमयंती एक नेक दिल महिला थी। वह दयालु एवं धार्मिक स्वभाव की थी। इसके ठीक विपरीत उसका पति महा कंजूस एवं मक्कार प्रवृति का था। काफी धन दौलत के बावजूद भी दोनों दुखी थे क्योंकि उनको अपना कोई संतान थीं था।
संतान प्राप्ति के लिए दोनों पति-पत्नी अकसर तीर्थ यात्रा पर जाया करते थे और ईश्वर से औलाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते थे। सेठानी तीर्थयात्रा के दौरान काफी दान करती थी मगर सेठ एक भी पैसा दान नहीं करता था। वह पत्नी से भी कम खर्च करने के लिए कहता था। मगर सेठानी खुले हाथ से दान करती थी। वह कहती थी कि आपके इसी आदत की वजह से ही हमें संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है। इतना सुन सेठ खामोश हो जाता।
एक बार दोनों पति-पत्नी बद्रीनाथ की यात्रा पर निकले। तीर्थयात्रा पर जाने से पहले उसने अपनी पत्नी को समझाया कि पूजा कराने वाले पंडा को पांच रूपया से अधिक मत देना । उसने पति से कहा कि आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगी। इसके बाद दोनों यात्रा पर निकल पड़े।
दोनों बद्रीधाम पहुँच एक धर्मशाला में ठहर गए। अगले दिन दोनों भगवान का दर्शन करने मंदिर पहुंचे। पूजा कराने के समय पंडित जी अपनी चतुराई से सेठजी से ग्यारह रुपये का संकल्प करा लेते हैं। सेठजी अंदर ही अंदर कुपित होकर रह जाते हैं। वे पंडित जी से पीछा छुड़ाने के लिए अपनी मक्कारी का सहारा लेते हैं। वे अपनी लच्छेदार बातों से पंडित जी को प्रभावित कर इस बात के लिए राजी कर लेते हैं कि वे अपनी दान की राशि एक वर्ष बाद आकर उनके घर पर सूद समेत ले लें। अपने घर का पता पंडित जी को देकर वे अपने घर लौट आए।
एक वर्ष के बाद पंडित जी सेठ के घर आ पहुंचे। उन्हें जब खबर मिली कि पंडित जी दान की राशि लेने आए हैं तो वह घबरा उठे। सेठ जी सांस रोकने की विद्या में प्रवीण थे। वे सांस रोककर पलंग पर लेट गए और पत्नी से कहा कि पंडित जी से जाकर कह दो कि सेठजी बीमार हैं इसलिए वे छह माह बाद पधारें। सेठानी ने पंडित जी से कहा कि उसके पति सख्त बीमार हैं इसलिए वे छह माह बाद आएँ। पंडित जी सेठ की मक्कारी भांप गए मगर चुपचाप चले गए।
छह माह बाद पंडित जी पुनः आ धमके। इस बार भी सेठ ने सांस रोकने की विद्या का ही सहारा लिया। इस बार पंडित जी सेठ के पास ही बैठ गए। सेठ जब लगातार दस घंटे तक सांस रोके पड़ा रहा तब पंडित जी एवं गांव वालों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पंडित जी गांव वालों की सहायता से सेठ को लेकर श्मशान पहुँचे। ।
श्मशान पर सेठजी की अर्थी सजा गई। जब जलाने की तैयारी की जाने लगी तब भगवान से नहीं रहा गया।भगवान प्रकट हो सेठ से वर माँगने को कहा। सेठ ने बड़ी शालीनता से कहा, "हे प्रभु, मेरे पास आपका दिया हुआ सबकुछ है। आप यदि मुझ पर कृपा ही करना चाहते हैं तो पंडितजी को ग्यारह रूपया देकर उनसे मेरा पीछा छुड़वा दीजिए।" भगवान के तथास्तु कहा और पंडित जी को ग्यारह रुपया चुका दिया।
" चमड़ी जाए तो जाए मगर दमड़ी (धन) न जाए" वाली कहावत इस कहानी में चरितार्थ होती है। मात्र ग्यारह रुपये की खातिर सेठ अपने प्राण गंवाने तक तैयार हो गया। सेठ की पत्नी द्वारा किए गए सुकर्मों के कारण ही उसकी जान बच सकी।
➡️ सुरेन्द्र कुमार रंजन
( स्वरचित एवं अप्रकाशित लघुकथा)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com