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हनुमानजी द्वारा अर्जुन का अभिमान दूर

हनुमानजी द्वारा अर्जुन का अभिमान दूर

आनंद हठिला पादरली (मुंबई)
आज भागवतजी के उस प्रसंग की व्याख्या करेंगे जब भगवान् श्री कृष्णजी अर्जुन को हनुमानजी द्वारा अर्जुन का अभिमान दूर करवाते है और दो वीरो को मिलवाते है, "सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति" सखा भाव में कभी-कभी अर्जुन भगवान् के ऐश्वर्य को समझ नही पाते थे, उनको तो ऐसा लगता था कि मेरे जैसा वीर ना कभी हुआ है और ना होगा।

भगवान् श्री कृष्णजी हनुमानजी की वीरता को भी दिखाना चाहते थे कि अगर तुम वीर हो तो एक महावीर भी हैं, एक बार हनुमानजी सागर के किनारे बैठे थे, अर्जुन घुमते-घुमते वहाँ आ गयें तो परिचय हो गया, अच्छा-अच्छा आप ही हनुमानजी हैं, अर्जुन ने कहा कि हमने सुना है कि आप इतने बड़े वीर और बलवान है परन्तु आप सागर पर पुल नही बना पाये, पत्धर ढो-ढो कर वानरों को बनवाना पडा।

अगर मैं होता तो अपने बाणों से ही सागर पर पुल बना देता, हनुमानजी ने कहा कि बाणों से पुल बांधा जा सकता था, लेकिन सेना इतनी भारी थी कि उनके भार को बाणों का पुल सहन नही कर पाता इसलिये हम लोगों को पत्थर लाकर पुल बनाना पडा, अर्जुन ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है, मैं पुल बनाकर देखता हूँ हनुमानजी बोले क्यो परिश्रम करते हो तुम्हारा पुल मेरा ही भार सहन नही कर पायेगा।

अर्जुन ने अभिमान से कहाँ, अरे कैसी बात करते है आप, अर्जुन के बाण और निष्फल चले जायें, जिद कर बैठे अर्जुन, शर्त तय हो गयी कि अगर मेरे बाण निर्मित पुल से आप पार हो गयें तो आपको चिता में अग्नि प्रवेश लेना होगा और मेरे बनायें पुल को यदि आपने तोड़ दिया तो मैं अग्नि में प्रवेश लूंगा, भगवान् को बड़ा अटपटा लगा, ऐसी भी कोई प्रतिज्ञा होती है? दोनों ही मेरे प्रिय हैं और चिता में जलने को तैयार है जरा सी बात पर।

अर्जुन ने बाणों से पुल बनाया, बोले जाओ, तब हनुमानजी ने जय श्रीराम कहकर जैसे ही अपना दाहिना चरण रखा पुल चरमरा गया, अब प्रतिज्ञाबद्ध अर्जुन को लगा कि मुझे जीवित रहने का अधिकार नही, चिता बनाकर प्रवेश करने वाले ही थे कि ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण प्रकट हो गये और कहने लगे- क्या बात है किसकी चिता है? अर्जुन बोले- मैं प्रतिज्ञा हार चुका हूँ इसलिये मैं चिता में जीवित जलने जा रहा हूँ।

ब्राह्मण ने कहा कि क्या कोई तुम्हारी शर्त के बीच में कोई साक्षी था? तो फिर ऐसे कैसे कोई शर्त पूरी हो सकती हैं, कोई न कोई बीच में निर्णायक चाहिये, अब बनाओ हमारे सामने तब हम देखेंगे, दुबारा बाणों से पुल बनाया गया, हनुमानजी गयें और थोड़ा सा मचका दिया तो देखा सागर का जल रक्त से लाल हो गया, हनुमानजी समझ गयें कि मेरे प्रभु नीचे आ गये हैं, अर्जुन ने कहा कि यह सागर का सारा जल लाल कैसे हो गया? तब ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण प्रकट हो गये।


अर्जुन तुमको बचाना था, ये देखो मेरी पीठ पर हनुमानजी के भार के दाग हैं इस कारण इसका रंग लाल हो गया, इतने महावीर थे हनुमानजी, तब भगवान् ने कहा- अर्जुन हनुमानजी से प्रार्थना करो कि भविष्य में होने वाले महायुद्ध में हनुमानजी तुम्हारी सहायता करेंगे, हनुमानजी ने कहा कि मैं इस युद्ध में कमजोर लोगो को नही मार सकूँगा, क्योंकि मेरे स्तर पर लडने वाला आपके यहाँ कोई है ही नहीं, लेकिन हाँ मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करूँगा।


भगवान् ने कहा था कि आप इसके ध्वज की पताका पर बैठ जाइये इसलिए अर्जुन के रथ पर जो ध्वज लगी है उसको कपिध्वज नाम दिया गया है, तो हनुमानजी ने कहा कि मैं कभी-कभी अपनी गर्जना कर दिया करूंगा जिससे सामने वाले दुश्मन डर से कमजोर हो जायेंगे, जब अर्जुन रथ से तीर छोडता था तो श्रीहनुमानजी गर्जना करते थे और हनुमानजी की जो गर्जना होती थी भीष्म जैसे महापुरुष के हाथ से भी शस्त्र गिर जाया करते थे "हाँक सुनत रजनीचर भागे तीनो लोक हाँक तें कांपे" ऐसे थे श्रीहनुमानजी।


जब भगवान् श्रीरामजी ने पद देने का प्रयत्न किया था तब हनुमानजी ने कहा महाराज पद के साथ भूत जुड़ा है और भूत हमारे साथ आ नहीं सकता, "भूत पिसास निकट नहीं आवे, महाबीर जब नाम सुनावै" भूत पिशाच के पास आने का तो प्रश्न ही नहीं उठता भूत-पिशाच अंधेरे में रहना पसंद करते हैं और अंधकार अज्ञान का प्रतीक होता है।


और अंधकार और अज्ञान वहाँ होता है जहाँ भगवत चर्चा नही होती, जिस घर में कीर्तन व मंगलमय आरती न गायी जाती हो, जहाँ भगवान की कथा नही होती, जिस घर में भगवत चर्चा न हो, जिस घर में सुबह-शाम को देवताओं के नाम का दीपक न जलता हो उस घर में भूत-पिशाचो का वास हो जाता है, चुंकि भूत अंधेरे व अज्ञान में रहना पसन्द करते हैं।


इसलिये भाई-बहनों, हनुमानजी की कृपा के लिये घर को मंदिर बनाओं, अपने देह को देवालय बनाओं, ताकि श्री हनुमानजी महाराज की कृपा आप पर हमेशा बनी रहें,।
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