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वक़्फ़ पर बहस और न्यायिक परिदृश्य

वक़्फ़ पर बहस और न्यायिक परिदृश्य

  • सुप्रीम कोर्ट में 100 से अधिक याचिकाएँ क्यों दायर होती हैं, और हमारी ओर से केवल 2-3 ही क्यों?
  • लेखक डॉ राकेश दत्त मिश्र , सम्पादक दिव्य रश्मि |

भारतीय लोकतंत्र की शक्ति उसकी विविधताओं में निहित है। यहाँ धर्म, संस्कृति और परंपराओं की असंख्य धाराएँ सहस्राब्दियों से बहती रही हैं। इन्हीं में एक संस्था है – वक़्फ़, जो इस्लामी धार्मिक-सामाजिक परंपरा से जुड़ा एक ऐसा तंत्र है जिसके अंतर्गत संपत्ति को ईश्वर के नाम समर्पित कर दिया जाता है।

पिछले कुछ वर्षों में जब भी वक़्फ़ से संबंधित विवाद सामने आए हैं, सुप्रीम कोर्ट में भारी संख्या में याचिकाएँ दायर होती देखी गई हैं। आँकड़े दर्शाते हैं कि एक ही विषय पर सैकड़ों याचिकाएँ दाखिल होती हैं, जबकि दूसरी ओर हमारी तरफ़ से – चाहे वे हिंदू धार्मिक संपत्तियों के प्रश्न हों या सामान्य नागरिक अधिकारों से जुड़े विवाद – केवल 2-3 याचिकाएँ ही सुप्रीम कोर्ट पहुँच पाती हैं। यह असमानता केवल संख्या का प्रश्न नहीं, बल्कि न्याय, समाज और राजनीतिक सक्रियता के संतुलन का भी प्रश्न है।
वक़्फ़ : परिभाषा और स्वरूप

इस्लामी न्यायशास्त्र के अनुसार, वक़्फ़ का आशय है – किसी संपत्ति को स्थायी रूप से अल्लाह के नाम समर्पित कर देना।

धार्मिक दृष्टि से यह ईश्वर की राह में दान है।

कानूनी दृष्टि से यह संपत्ति एक बार वक़्फ़ हो जाए तो न तो बेची जा सकती है, न गिरवी रखी जा सकती है और न ही स्थानांतरित।

भारत में स्वरूप – 1954 और बाद में 1995 के वक़्फ़ अधिनियमों के अंतर्गत वक़्फ़ बोर्ड गठित हुए, जिन्हें इन संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार प्राप्त है।
आज भारत में लगभग 8.7 लाख वक़्फ़ संपत्तियाँ हैं, जो 6 लाख एकड़ से भी अधिक भूमि पर फैली हैं। यह आँकड़ा स्वयं दर्शाता है कि वक़्फ़ का आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक महत्व कितना व्यापक है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

मध्यकाल – दिल्ली सल्तनत और मुग़लकाल में शासकों तथा अमीरों ने मस्जिदों, मदरसों और दरगाहों के लिए भूमि व संपत्तियाँ वक़्फ़ में दीं।

औपनिवेशिक युग – अंग्रेज़ों ने 1913 का Mussalman Wakf Validating Act पारित किया, जिससे इस संस्था को वैधता प्राप्त हुई।

स्वतंत्रता के पश्चात – 1954 का वक़्फ़ अधिनियम और उसके बाद 1995 का संशोधित अधिनियम लागू हुआ। राज्यों में वक़्फ़ बोर्ड गठित हुए, जिन्हें व्यापक अधिकार प्राप्त हुए।
वक़्फ़ से जुड़े विवाद
वक़्फ़ संपत्तियों को लेकर समय-समय पर अनेक विवाद उभरे हैं:

निजी एवं सार्वजनिक भूमि पर वक़्फ़ का दावा,

वक़्फ़ बोर्डों के प्रबंधन में भ्रष्टाचार,

विभिन्न समुदायों के बीच अधिकार विवाद।

ये विवाद अकसर उच्चतम न्यायालय तक पहुँचते हैं और यहीं से याचिकाओं की भारी संख्या उत्पन्न होती है।
सुप्रीम कोर्ट में भारी संख्या में याचिकाएँ क्यों?

जब वक़्फ़ पर कोई मुद्दा उठता है तो सुप्रीम कोर्ट में एक साथ सैकड़ों याचिकाएँ दायर होती हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण हैं –

संगठनबद्धता – मुस्लिम समाज वक़्फ़ के मुद्दे पर एकजुट होकर सामने आता है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठन सामूहिक रूप से याचिकाएँ दायर करते हैं।

आर्थिक व कानूनी संसाधन – वक़्फ़ बोर्डों के पास सरकारी व निजी दोनों स्तर पर पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं। ये बड़े वकीलों को खड़ा करने में सक्षम रहते हैं।

राजनीतिक समर्थन – अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति के कारण वक़्फ़ मामलों में राजनीतिक दल सक्रिय रहते हैं।

रणनीतिक मुक़दमेबाज़ी – उद्देश्य केवल न्याय प्राप्त करना नहीं, बल्कि मुद्दे को सामूहिक अधिकार का स्वरूप देना होता है। इसलिए एक ही विषय पर अनेक याचिकाएँ दाखिल की जाती हैं।
हमारी ओर से केवल 2-3 याचिकाएँ क्यों?

इसके विपरीत, जब हमारी ओर से (विशेषकर हिंदू धार्मिक संपत्तियों या मंदिरों से जुड़े प्रश्नों में) कोई मामला सुप्रीम कोर्ट जाता है तो याचिकाओं की संख्या नगण्य रहती है। इसके पीछे कई कारण हैं –

असंगठन – हिंदू समाज विशाल होते हुए भी बिखरा हुआ है। किसी एक मंच पर एकजुटता का अभाव है।

कानूनी साक्षरता का अभाव – सामान्य व्यक्ति न्यायालयीन प्रक्रिया को जटिल और खर्चीला मानता है।

आर्थिक कठिनाई – सामूहिक कोष न होने से सक्षम वकीलों को खड़ा करना कठिन होता है।

राजनीतिक उदासीनता – राजनीतिक दल मंदिरों या हिंदू संपत्तियों के मामलों में सक्रियता से बचते हैं।

मीडिया का रुझान – वक़्फ़ मामलों को “अल्पसंख्यक अधिकार” कहकर प्रस्तुत किया जाता है, जबकि हिंदू पक्ष को “सांप्रदायिक दबाव” की संज्ञा दी जाती है।
न्यायपालिका और वक़्फ़

सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर वक़्फ़ अधिनियम की व्याख्या करते हुए अनेक महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। सामान्यतः न्यायालय वक़्फ़ संपत्तियों को विधिक संरक्षण प्रदान करता है। याचिकाओं की भारी संख्या स्वयं न्यायालय पर दबाव बनाती है कि वह व्यापक दृष्टिकोण से सुनवाई करे।
वर्तमान चुनौतियाँ

तुलना का प्रश्न – लाखों हिंदू मंदिरों की संपत्तियाँ हैं, परंतु उनका कोई केंद्रीय बोर्ड नहीं। कई राज्यों में सरकार मंदिर संपत्तियों का सीधा नियंत्रण करती है।

राजनीतिक समीकरण – अल्पसंख्यक मामलों को प्राथमिकता मिलती है, जबकि बहुसंख्यक हितों पर अपेक्षाकृत उदासीनता।

बौद्धिक विमर्श – मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग में असंतुलन दृष्टिगोचर होता है।
आगे की राह : समाधान व रणनीति
इस असंतुलन को दूर करने हेतु आवश्यक है कि –

सामूहिक संगठन – मंदिर और धार्मिक संपत्तियों की सुरक्षा हेतु एक राष्ट्रीय मंच का गठन।

कानूनी साक्षरता – समाज को न्यायालयीन प्रक्रिया की जानकारी देना।

आर्थिक संसाधन – सामूहिक कोष द्वारा सक्षम अधिवक्ताओं की नियुक्ति।

मीडिया व जन आंदोलन – विषय को सामाजिक विमर्श का हिस्सा बनाना।

राजनीतिक दबाव – दलों से अपेक्षा कि वे बहुसंख्यक अधिकारों के प्रश्नों पर भी तत्परता दिखाएँ।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ मामलों पर सैकड़ों याचिकाएँ और हमारी ओर से केवल 2-3 याचिकाएँ – यह अंतर केवल आँकड़ों का नहीं, बल्कि संगठन, संसाधन, नेतृत्व और रणनीति का अंतर है।

जब तक हम संगठित होकर सामूहिक प्रयास नहीं करेंगे, न्याय की प्रक्रिया में यह असमानता बनी रहेगी। भारत की लोकतांत्रिक गरिमा इसी में है कि सभी समुदाय समान रूप से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय हों। अतः आवश्यकता है कि हम जागरूकता, संगठन और संसाधन जुटाकर इस चुनौती का सामना करें। यही न्याय और संतुलन की दिशा में हमारा अगला कदम होना चाहिए।
संदर्भ सूची (References / Bibliography)

वक़्फ़ अधिनियम, 1954 एवं संशोधित अधिनियम, 1995 – भारत सरकार, विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा प्रकाशित।


Government of India, Sachar Committee Report (2006) – सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर रिपोर्ट, जिसमें वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन और उनकी चुनौतियों का उल्लेख।


Hasan, M. (2015). Waqf in India: Legal and Administrative Dimensions. New Delhi: Oxford University Press.


Engineer, Asghar Ali (1999). The Waqf System and Its Relevance in Contemporary India. Economic and Political Weekly.


Supreme Court of India – प्रमुख निर्णय:


Board of Muslim Wakfs, Rajasthan vs Radha Kishan & Ors (1979 AIR 289).


Syed Mohd. Salie Labbai (dead) vs Mohd. Hanifa (dead) by LRs (AIR 1976 SC 1569).


Waqf Board of Tamil Nadu vs State of Tamil Nadu (Supreme Court Judgments, 2010 onwards).


Rizvi, S. A. A. (1982). A History of Sufism in India. Munshiram Manoharlal Publishers.


Qureshi, Ishtiyaq Ahmad (1962). The Administration of the Waqf in India. Institute of Islamic Studies, Aligarh.


Indian Law Institute (2005). Journal of the Indian Law Institute, विशेषांक: वक़्फ़ एवं धार्मिक संपत्ति विवाद।


Government of India, Report of the Joint Parliamentary Committee on Waqf (2008) – वक़्फ़ संपत्तियों की स्थिति और सुधार संबंधी सुझाव।


Nandini Sundar & Amita Baviskar (eds.) (2012). Field Notes on Democracy and Religion in India. Penguin India.


विभिन्न समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ – The Hindu, Indian Express, Dainik Jagran, Hindustan, Divya Rashmi आदि में प्रकाशित समाचार व संपादकीय लेख।

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