खान पान का प्रभाव
जय प्रकाश कुवंर
ऐसा माना जाता है कि हमारे खान पान का हमारे जीवन शैली और शारीरिक तथा मानसिक व्यवहार पर सीधा असर पड़ता है। जैसा हमारा खान पान होगा, उसी के अनुरूप हमारे शरीर में रक्त बनेगा और उसी के अनुसार हमारा अपने परिवार तथा समाज में व्यक्तियों के साथ व्यवहार होगा।
हमारे खान पान अथवा भोजन के दो दर्जे हैं, शाकाहारी और मांसाहारी। शाकाहारी भोजन को सात्विक भोजन भी कहा जाता है। जबकि मांसाहारी भोजन को तामसिक भोजन कहा जाता है।
भोजन के इस दो प्रकार के चलते ही हमारे जीवन में जो व्यवहारिक गुण विकसित होते हैं, उसे रजोगुण एवं तमोगुण कहते हैं। शाकाहारी अथवा सात्विक भोजन से जो गुण विकसित होता है उसे रजोगुण कहा जाता है तथा मांसाहारी अथवा तामसिक भोजन से जो गुण विकसित होता है उसे तमोगुण कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि कलियुग में, जिसका उम्र अब लगभग ५१४७ साल हो चुका है, तमोगुण का प्रभाव रजोगुण की तुलना में ज्यादा रहना है। आज कल प्रत्यक्ष रूप से देखा जा रहा है कि समाज में चोरी, छिनतई, कत्ल, व्यभिचार आदि का प्रभाव कितना बढ़ गया है। आदमी को अब आदमी से प्रेम नहीं रह गया है और ज्यादा लोग दूसरों का दुख देखकर अब दुखी होने के जगह आनंदित होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि सात्विक गुण होने पर मनुष्य दूसरों का सुख देखकर खुश होता है और दूसरे का दुख देखकर दुखी होता है । जबकि मनुष्य में तमोगुण विकसित होने पर वह दुसरे का सुख देखकर जलता है और उसका दुख देखकर आनंदित होता है। तामसिक गुणों के इंसान हमेशा बुरा ही सोचते हैं। वे कभी किसी का भला नहीं सोचते हैं।
श्री रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने भी ऐसा लिखा है कि :-
तामस बहुत रजोगुण थोड़ा।
कलि प्रभाव विरोध चहुँ ओरा।।
इन पंक्तियों में उनका कहना भी यही है कि कलियुग में रजोगुण कम हो जाएगा और तमोगुण बहुत हो जाएगा। इस कारण से समाज में चारों ओर बैर विरोध बढ़ जाएगा।
सात्विक भोजन के सेवन से मनुष्य का दिमाग शांत और शरीर स्वस्थ रहता है। यह आहार साधारण होता है और प्राकृतिक तरीके से उत्पादित किया जाता है। इस दर्जे में सभी प्रकार के अन्न, दालें, दूध, दही, लस्सी, साग सब्जियां, मेवे, शहद, मक्खन, मलाई, पनीर आदि आते हैं। इस प्रकार का भोजन मनुष्य के धैर्य, समझदारी और सचेतता को बढ़ावा देता है और मन को संतुलित रखता है। घर में सामान्य रूप से व्यवहार किये जाने वाले मसाले, जैसे हल्दी, अदरक, धनिया, सौंफ तथा दालचीनी आदि भी सात्विक भोजन की गणना में ही आते हैं।
मांसाहारी अथवा तामसिक भोजन में बासी, सड़े गले, मांसाहारी खाद्य पदार्थ और अत्यधिक प्रसंस्कृत भोजन शामिल हैं। इसके अलावा मदिरा, अत्यधिक मात्रा में चाय काफी, तंबाकू, अफीम, गांजा,चरस , कोकिन, ब्राउन शुगर, लहसुन, प्याज आदि भी तामसिक भोजन में शामिल हैं। अब तो नये शोध के अनुसार तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें मैदा, वनस्पति घी और रासायनों का प्रयोग हुआ है, जैसे पेस्ट्री, पिज्जा,बर्गर , ब्रेड, चाकलेट, साफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रूमाली रोटी, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स एवं सभी तले हुए पदार्थ आदि को भी शामिल किया गया है। ऐसे भोजन आलस, सुस्ती, भ्रम और तरह तरह के नकारात्मक शारीरिक एवं अन्य प्रभाव मनुष्य पर डालते हैं। ऐसे भोजन अज्ञानता और मानसिक अशांति पैदा करने के मुख्य कारण हैं। जिसके कारण आज समाज में तरह तरह की अशांति फैल रही है।
भारतीय ऋषि मुनियों और संतों ने शदियों से शाकाहार को मानसिक पवित्रता और आत्मिक उन्नति का आधार माना है। इस प्रकार के भोजन को सेवन करने से घर तथा समाज में हर तरह की शांति बरकरार रहती है।
सबसे बड़ी बात जो हमें दिखाई पड़ती है, वह यह है कि मांसाहारी अथवा तामसिक आहार के लिए जब हम मांस खरीदने जाते हैं तो हम हिंसा करते हुए अपने आंखों के सामने देखते हैं। अपने आंखों के सामने हिंसा किए हुए उस मांस को जब पकाकर खाते हैं तो वह खाना और उससे बना हुआ हमारे शरीर में रक्त हमें स्वयं को भी हिंसक बना देता है। फिर हिंसक से हम व्यभिचारी बन जा रहे हैं । और हमारी यह तामसिक प्रवृत्ति न जाने हमें कितना नकारात्मक और अत्याचारी बना रही है और दिनों दिन हम कितने नीचे गिराते जा रही है।
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