गणेश वंदना
         ✍️ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
गणेश उत्सव आया है, ले अनुपम उपहार।
भक्तों के मन भाव में, गूंजे जय जयकार॥
पुष्प, धूप, आरती ले, करे जन आराध।
तेरे दर्शन मात्र से, हो जाता सब साध॥
शिव गौरी के लाल तू, सब विधि जाननहार।
बुद्धि विवेक सिखावता, करता संकट पार॥
त्रिनयन शोभा लाजवाब, मन को मोहे रूप।
मन मंदिर में तू बसे, मिटे मोह का धूप॥
तू प्रथम पूज्य देव है, तेरे गुण अपार।
तेरा स्मरण करे जो, बने उसका उद्धार॥
रिद्धि सिद्धि संग तेरे, चरणों की है छाँव।
जो भी तुझको मान ले, मिटे उसके दाव॥
राजा हो या रंक हो, सबके तू रखवाल।
मोदक लड्डू भोगते, दे हर सुख की थाल॥
लाल सिंदूरी तनक, मोदक प्रिय भुजधार।
भक्ति हेतु जो पुकार दे, उसका हो उद्धार॥
अनंत चतुर्दशी को जब, विदा की बेला आए।
आंखें नम हो जाएं सब, स्वर “मोरया” गाए॥
अगले बरस तू फिर मिल, कर देना उपकार।
गणपति बाप्पा मोरया, कर दो बेड़ा पार॥
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