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कलयुग में हो रहा,द्वापर सा अहसास

कलयुग में हो रहा,द्वापर सा अहसास


कुमार महेन्द्र
अनंत नमन सर्व आकर्षित उपमा,
कर्म ज्ञान भक्ति प्रेरणा पुंज ।
नवनीत सम सांस्कृतिक पटल,
अपरिमित आस्था जन निकुंज ।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी अनूप,
सर्वत्र कान्हा जन्मोत्सव उल्लास ।
कलयुग में हो रहा,द्वापर सा अहसास ।।


लड्डू गोपाल रण छोड़ बिट्ठल,
माघव बनमाली दिव्य नाम ।
नटवर नागर राधावर मुकुंद,
गोविंद केशव छवि अविराम ।
नंदलाल वृंदावन बिहारी सह
एक सौ आठ संज्ञा प्रभास ।
कलयुग में हो रहा,द्वापर सा अहसास ।।


निर्वहन सहज सरस भूमिका,
नायक प्रेमी योद्धा व मित्र ।
योगी सारथी नीति विशारद ,
धूप छांव स्थितप्रज्ञ चित्र ।
सदा प्रशस्त कर्मयोग पथ ,
अधर्म हित सजग प्रयास ।
कलयुग में हो रहा,द्वापर सा अहसास ।।


कान्हा जीवन अनुपमा अद्भुत,
वर्तमान समय अति महत्ता ।
तज नैराश्य वैमनस्य क्रोध ,
नित उन्मुख कर्तव्य सत्ता ।
मनुज सामर्थ्य प्रतिभा अथाह,
पर कर्म स्पर्श सफलता उजास।
कलयुग में हो रहा, द्वापर सा अहसास ।।


कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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