तुम्हीं तो हो मेरे प्रियवर
मुदित प्रमुदित आनन,रमणीय मृगनयनी चाल ।
किसलय कोमल कपोल,
चित गात्र मस्त उछाल ।
अंग प्रत्यंग तारुण्य रस,
तृप्ति उत्कंठा तृष अधर ।
तुम्हीं तो हो मेरे प्रियवर ।।
हिय जिय अनुराग प्रतिष्ठा,
जीवन ज्योति दिव्य उपमा ।
नेह मनोरमा नयन पटल,
रग रग लावण्य निर्झर रमा ।
अति कमनीय सौष्ठव प्रभा,
प्रणय जन्य आकांक्षा सरोवर ।
तुम्हीं तो हो मेरे प्रियवर ।।
स्नेहिल सौम्य आभा मंडल,
अति मनोरम लैंगिक स्पंदन ।
कामायनी सदृश रूप श्रृंगार,
संवाद पटल प्रीत अभिवंदन ।
हाव भाव प्रगाढ़ मैत्री चिह्न,
अनुमोदन स्मित मधुरिमा प्रवर ।
तुम्हीं तो हो मेरे प्रियवर ।।
सुखद मंगल स्वप्निल विहान,
माधुर्य पूर्ण उर अठखेलियां ।
प्रेम भाषा शब्द अर्थ परे,
दर्श हित नव शोध पहेलियां ।
हर पल उत्साह उमंग सराबोर,
अंतस्थ तत्पर मिलन अवसर ।
तुम्हीं तो हो मेरे प्रियवर ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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