हास्य बिहारी हिन्दी
जा जा रे बरखा ,अईसा तू तरखा ।
धरतीयो हिल गई ,
हमने तुझे परखा ।।
कोई रटे बरखा के ,
कहीं भरमार हुआ ।
कहीं है सूखा सूखी ,
तो कहीं दहार हुआ ।।
दूर भया सूखा गर्मी ,
गीला गर्मी आ गया ।
उमस भरा घुटन हुआ ,
किंतु बरखा भा गया ।।
टर्राया न अभी मेंढ़क ,
मध्य बरसात छा गया ।
मेंढ़क मिट्टी को खाया ,
या मिट्टी मेढक खा गया ।।
बरखा हुआ झमाझम ,
कहीं जोर गरमा गया ।
आ रहा है जोर बरखा ,
कहीं ऐसे ही भरमा गया ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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