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भ्रातृ श्वसा पावन प्रेम का बंधन ,

भ्रातृ श्वसा पावन प्रेम का बंधन ,

रक्षाबंधन तेरा हार्दिक अभिनंदन।
भ्रातृ श्वसा मिलन को हैं उत्सुक ,
भाई बहन के प्रेम को है वंदन ।।
भाई बहन सदा संग बहुत खेले ,
सुख दुःख दोनों संग संग झेले ।
खूब हॅंसे खेले रोए औ खूब गाए ,
संग संग घूमे फिरे व देखे मेले ।।
जुदा हुए तो बहुत ही दुःख हुआ ,
किंतु उस गम को दोनों सह गए ।
मोबाईल को ये साधन बनाकर ,
संतोष करके सब कोई रह गए ।।
सहारा बना दोनों का मोबाईल ,
वीडियो काॅल बहुत ही प्यारा है ।
मात पिता बेटा बेटी बहन भाई ,
मोबाईल संग वीडियो सहारा है।।
कभी भाई करे इंतजार बहन का,
कभी बहन करे भाई का इंतजार।
बहन खरीदी राखी के संग मिठाई ,
भाई खरीदा तोहफा संग प्यार ।।
कभी आई बहन राखी बाॅंधने ,
कभी गए भईया लेकर उपहार ।
भईया ने लिया सुरक्षा संकल्प ,
बहन दी भ्रात आशीष हजार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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