पक्षीराज गरुड़ से जुड़ी है अमृत कुम्भ की कथा.jpeg)
आनंद हठिला पादरली (मुंबई).jpeg)
हर 12 वर्षों में चार पवित्र स्थानों में महाकुंभ महापर्व का आयोजन होता है। देश-दुनिया के कोने-कोने से नागा-साधु, सन्यासी, संत, किन्नर, करोड़ों श्रद्धालु कुंभ के अमृत को पाने पहुंचते हैं। ऐसा कहा जाता है कि 850 वर्ष पहले कुंभ की शुरुआत शंकराचार्य ने की थी। ज्योतिष के अनुसार, कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों की स्थिति यानि बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के आधार पर होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के दौरान आदिकाल से ही हो गया था। इसको लेकर कुछ और भी कहानियां प्रचलित हैं। इनमें एक कहानी है सांपों और पक्षीराज गरुड़ की।
भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ से जुड़ी है यह कहानी👇
एक ऋषि थे जिनका नाम था कश्यप। उनकी दो पत्नियां थी जो आपस में बहने थीं, एक थीं कद्रू और दूसरी विनीता।कद्रू ने ऋषि कश्यप से एक दिन एक वरदान मांगा कि मुझे 100 विषैले बच्चे चाहिए, जो बहुत शक्तिशाली हों। ऋषि कश्यप ने तथास्तु कह दिया और कद्रू को मिले 100 अंडे।
विनीता को मिले दो बड़े अंडे👇
यह देखकर विनीता को लगा कि मुझे भी वरदान मिलना चाहिए। विनीता भी ऋषि कश्यप के पास गईं और उन्होंने कहा कि मुझे भी वरदान दीजिए, मगर मेरे बच्चे कद्रू के बच्चों से ज्यादा शक्तिशाली होनें चाहिए। ऋषि कश्यप ने तथास्तु कहा और विनीता को मिले दो बड़े अंडे।
सर्पों की मां कद्रू👇
कद्रू के पास जो 100 अंडे थे वह एक करके धीरे-धीरे टूटने लगे और उन अंडों में से बच्चे यानी सांप निकलने लगे। आज पूरी दुनिया में जितने सर्प हैं उन सब की मां कद्रू को माना गया है। कद्रू के एक-एक करके जब अंडे टूटने लगे और उनमें से बच्चे निकल लगे तो विनीता के सब्र का बांध टूटने लग गया, उनको लगा कि जब इसके बच्चे हो रहे तो मेरे क्यों नहीं हो रहे और जल्दबाजी में विनीता ने दो में से एक अंडा खुद अपने हाथ से फोड़ दिया।
विनीता को मिले अंडो से निकले अरुड़ और गरुड़👇
उस अंडे से जो निकला वह अर्ध विकसित शरीर था, एक ऐसा शरीर जो ऊपर से कमर तक बना था, मगर कमर के नीचे तैयार होना बचा था और नाराजगी से उन्होंने अपनी मां विनीता से कहा कि यह गलती जो आपने मेरे साथ किया वह दूसरे अंडे के साथ मत कीजिएगा। सब्र रखिए और आसमान में उड़ गया। उनका नाम अरुड़ पड़ा और वो आगे चलकर भगवान सूर्य के रथ के सारथी बने। समय के साथ जब दूसरा अंडा फूटा तो उसमें से एक शक्तिशाली बाज पैदा हुआ और उसका नाम रखा गरुड़।
अमृत कलश लाने की शर्त👇
इन सब के बीच गरूण की मां विनीता, अपनी बहन कद्रू से एक शर्त हारने के कारण उनकी दास बन गईं। गरुड़ को यह अच्छा नहीं लगा, उन्होंने कद्रू और उनके बच्चों से जो सांप थे पूछा कि मेरी मां को कैसे मुक्ति मिलेगी। तब कद्रू और उनके बेटों ने शर्त रखी कि अगर तुम देवों के पास रखा समुंद्र मंथन से निकला अमृत कलश ला दोगे तो दोनों को दासत्व से मुक्त कर देंगे।
गरुड़ और देवों के बीच युद्ध👇
अब शक्तिशाली गरूण देव लोक पहुंच गए और छिपा हुआ अमृत कलश लेकर उड़ चले। ये देख देवों के राजा इंद्र उनके सामने आ गए, जिन्हें गरुड़ ने हरा दिया। देवों ने तमाम कोशिश की लेकिन गरुड़ से जीत नहीं पाए। अंत में हारकर सब विष्णु जी के पास पहुंचे। और बोले कि अनर्थ हो जाएगा। अगर यह अमृत कलश गलत हाथों में चला गया तो।
भगवान विष्णु से गरुड़ का युद्ध👇
देवों की वनती के बाद गरूण के सामने भगवान विष्णु युद्ध में उतरे। गुरुण और विष्णु जी के बीच युद्ध शुरू हो गया। इसी बीच में विष्णु जी को यह समझ में आया कि गरुड़ के हाथ में अमृत कलश है, मगर गरुड़ उसको खोल कर अमृत ग्रहण नहीं कर रहे हैं सिर्फ हाथ में पकड़कर उसे बचा रहे हैं।
भगवान विष्णु ने गरुड़ को बनाया वाहन👇
विष्णु जी ने पूछा कुंभ को लेकर कहां जाने की कोशिश कर रहे हो और जब अमृत तुम्हारे हाथ में तो उसको पी क्यों नहीं रहे हो। तब गरुड़ ने पूरी व्यथा बताई कि वह अपनी मां को मुक्त करने के लिए ले जाना चाहते हैं। विष्णु जी ने कहा कि ठीक है, मैं एक शर्त पर तुमको यह अमृत कलश ले आने दूंगा। जमीन पर पहुंचने के बाद तुम हमेशा के लिए मेरे वाहन बन जाओगे और मेरे साथ रहोगे। गरुड़ ने यह शर्त स्वीकार कर ली, जिसके बाद कलष विष्णु जी ने ले जाने दिया, लेकिन गरुड़ ने अमृत कलश जैसे ही जमीन पर रखा विष्णु जी ने मायावी शक्तियों से उस कलश को वहां से गायब कर दिया लेकिन क्योंकि वह अमृत कलश कद्रू और उनकी मां तक पहुंचा दिया था, इसलिए उनकी मां को दासत्व से मुक्ति मिल गई।
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