भारतीय चिकित्सा संहिता: एक नैतिक क्रांति की ओर
✍️ डॉ. राकेश दत्त मिश्र
भारत की चिकित्सा प्रणाली एक समय विश्व की अग्रणी स्वास्थ्य प्रणालियों में गिनी जाती थी। आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और योग जैसे भारतीय पद्धतियाँ समग्र चिकित्सा की मिसाल थीं, जिसमें केवल रोग का नहीं बल्कि पूरे शरीर, मन और आत्मा का इलाज होता था। परंतु आज, भारत में आधुनिक चिकित्सा पद्धति (एलोपैथी) ने जिस प्रकार से बाज़ारीकरण और लालच की अंधी दौड़ में नैतिकता को ताक पर रखा है, वह चिंताजनक है। डॉक्टर, निजी अस्पताल, और दवा कंपनियों की तिकड़ी — जिसे हम "चिकित्सा माफिया" भी कह सकते हैं — ने चिकित्सा को सेवा से बदलकर व्यापार बना दिया है।
ऐसे परिदृश्य में अगर "भारतीय चिकित्सा संहिता" (Indian Medical Code of Ethics and Practice) देश में लागू हो जाती है, तो यह एक नैतिक चिकित्सा क्रांति का सूत्रपात होगा।
1. चिकित्सा का वर्तमान परिदृश्य
(क) व्यवसाय बनाम सेवा
आज अधिकांश निजी अस्पतालों और डॉक्टरों के लिए चिकित्सा का मूल उद्देश्य सेवा न होकर व्यापार बन गया है। 15 मिनट के ओपीडी में हजारों रुपये की वसूली, अनावश्यक जाँच, गैरज़रूरी सर्जरी, और महंगी दवाएं – ये सब मुनाफे की मानसिकता को दर्शाते हैं।
(ख) दवा कंपनियों का प्रभाव
भारत में दवा कंपनियाँ डॉक्टरों को विदेशी यात्राओं, गिफ्ट, कमीशन और प्रायोजित सेमिनार के माध्यम से प्रभावित करती हैं। फलस्वरूप, डॉक्टर मरीजों को वही दवाएं लिखते हैं जिनसे उन्हें अधिक कमीशन मिलता है, न कि वह जो मरीज के लिए सबसे उपयुक्त हो।
(ग) इंश्योरेंस और कैशलेस लूट
स्वास्थ्य बीमा कंपनियाँ और अस्पताल मिलकर लाखों की नकली बिलिंग करते हैं। कैशलेस इलाज के नाम पर गरीब जनता से झूठे दावे लिए जाते हैं, और बीमा क्लेम में भारी हेराफेरी होती है।
2. भारतीय चिकित्सा संहिता: क्या है इसका स्वरूप?
भारतीय चिकित्सा संहिता एक सामूहिक नैतिक आचार संहिता है जिसमें निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल हो सकते हैं:
(क) चिकित्सा को सेवा के रूप में परिभाषित करना
– चिकित्सा केवल एक पेशा नहीं, अपितु एक "धर्म" है।
– डॉक्टर को रोगी के प्रति निष्ठावान, संवेदनशील और नैतिक होना अनिवार्य होगा।
(ख) पारदर्शी चिकित्सा व्यवस्था
– इलाज की फीस और प्रक्रिया की पूर्व सूचना देना अनिवार्य।
– प्रत्येक जांच, दवा और प्रक्रिया की अनिवार्यता को लिखित रूप से बताना।
(ग) दवा माफिया पर नियंत्रण
– डॉक्टर केवल जेनेरिक दवाएं लिखेंगे।
– डॉक्टर और दवा कंपनियों के बीच किसी भी प्रकार के वित्तीय संबंध पर पूर्ण प्रतिबंध।
(घ) आय और लाभ की सार्वजनिक रिपोर्टिंग
– निजी अस्पतालों को सालाना लाभ और शुल्क निर्धारण की पारदर्शिता रखनी होगी।
– मरीज के पास इलाज से संबंधित बिलों की विस्तार से जानकारी का अधिकार होगा।
3. संहिता लागू होने के लाभ
(1) स्वास्थ्य का बाजारीकरण रुकेगा
चिकित्सा सेवा में पुनः नैतिकता और संवेदनशीलता लौटेगी। डॉक्टर एक सेवा प्रदाता के रूप में लौटेंगे, व्यापारी नहीं।
(2) भ्रष्टाचार में गिरावट
निजी अस्पतालों और दवा कंपनियों की मिलीभगत खत्म होगी। अनावश्यक सर्जरी और टेस्ट पर अंकुश लगेगा।
(3) मरीज का विश्वास बढ़ेगा
आज मरीज डॉक्टर के पास जाते समय भय और संदेह के साथ जाते हैं। संहिता लागू होने पर पारदर्शिता और भरोसा दोनों बढ़ेगा।
(4) आमजन को सस्ता और प्रभावी इलाज
जेनेरिक दवाओं के प्रचार से इलाज की लागत घटेगी और गरीब तबके को भी समान स्वास्थ्य सेवा मिलेगी।
4. क्यों हो रहा है विरोध?
(क) डॉक्टर लॉबी की असहजता
देश की अधिकांश निजी मेडिकल संस्थाएं इस प्रकार की संहिता के विरुद्ध रहेंगी क्योंकि इससे उनका लाभ प्रभावित होगा।
(ख) दवा कंपनियों का दबाव
दवा उद्योग एक विशाल पूंजी नियंत्रक क्षेत्र है, जो राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करता है। वे इस संहिता के विरोध में भारी लॉबिंग करते हैं।
(ग) बीमा कंपनियों की भूमिका
बीमा कंपनियाँ भी नहीं चाहतीं कि इलाज पारदर्शी और सस्ता हो, क्योंकि वे अधिक प्रीमियम और मुनाफा कमाना चाहती हैं।
5. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से तुलना
देश जैसे कनाडा, ब्रिटेन और स्कैंडेनेवियन राष्ट्रों में चिकित्सा प्रणाली अधिकतर सरकार द्वारा संचालित है, जहां इलाज मुफ्त या न्यूनतम शुल्क पर होता है। वहाँ की संहिताएँ डॉक्टरों को सख्त नैतिक मानकों से बांधती हैं।
भारत में अगर "भारतीय चिकित्सा संहिता" को इसी प्रकार से लागू किया जाए, तो यह एक वैश्विक आदर्श बन सकता है।
6. भारतीय चिकित्सा संहिता के संभावित प्रावधान (ड्राफ्ट रूप)
क्रम |
प्रावधान |
संक्षिप्त विवरण |
1 |
अनिवार्य
चिकित्सा रजिस्ट्रेशन |
बिना
रजिस्ट्रेशन कोई चिकित्सा सेवा न दे सके |
2 |
जेनेरिक
दवा अनिवार्यता |
सभी
डॉक्टर केवल जेनेरिक नाम से दवा लिखेंगे |
3 |
फिक्स
चार्ज गाइडलाइन |
सभी टेस्ट, सर्जरी, और ओपीडी की दरें तय होंगी |
4 |
मरीज
अधिकार पत्र |
मरीज को
सभी प्रक्रियाओं की जानकारी और स्वीकृति का अधिकार |
5 |
कमीशन
प्रतिबंध |
डॉक्टर को
किसी भी कंपनी से कमीशन लेना अपराध माना जाएगा |
6 |
चिकित्सा
ऑडिट बोर्ड |
हर
अस्पताल का हर 6 महीने में ऑडिट अनिवार्य होगा |
7 |
शिकायत
निवारण प्रकोष्ठ |
हर जिले
में चिकित्सा शिकायत समिति का गठन होगा |
7. "भारतीय चिकित्सा संहिता" लागू करने के लिए आवश्यक कदम
- संसदीय कानून के माध्यम से संविधानिक दर्जा देना।
- भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) का पुनर्गठन।
- स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा स्वतंत्र चिकित्सा नैतिकता बोर्ड का गठन।
- राज्य सरकारों के सहयोग से नियमों का सख्त कार्यान्वयन।
- जनजागरण अभियानों द्वारा लोगों को अधिकारों की जानकारी देना।
8. जनहित और जनांदोलन की भूमिका
आज यह ज़रूरी है कि आम नागरिक, सामाजिक संगठन, मीडिया, और नीति निर्माता — सभी एकजुट होकर इस मांग को जनांदोलन का रूप दें। जब तक जनता जागरूक होकर अपने अधिकारों की माँग नहीं करेगी, तब तक व्यवस्था में बदलाव संभव नहीं।
9. निष्कर्ष
“भारतीय चिकित्सा संहिता” का देशव्यापी क्रियान्वयन एक ऐतिहासिक कदम होगा। यह कदम न केवल चिकित्सा व्यवस्था को दुरुस्त करेगा, बल्कि देश में जनसेवा और मानवीयता को पुनर्स्थापित करेगा। देश के कोने-कोने में हजारों-लाखों गरीब, शोषित, और पीड़ित नागरिक वर्षों से एक ऐसी प्रणाली की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो उन्हें इंसान समझे, ग्राहक नहीं।
अब समय आ गया है जब चिकित्सा सेवा को सेवा ही रहने दिया जाए — व्यापार नहीं।
"जब चिकित्सा सेवा, व्यवसाय नहीं सेवा बनेगी, तभी भारत स्वस्थ और सशक्त बनेगा।"
"भारतीय चिकित्सा संहिता लागू करें — स्वास्थ्य व्यवस्था को शुद्ध करें।"
✍️ डॉ. राकेश दत्त मिश्र
(सम्पादक दिव्य रश्मि )
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