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चाहत एक फूल की

चाहत एक फूल की

जय प्रकाश कुवंर
मैं एक खिला हुआ फूल हूँ।
मेरी सुंदरता तब तक है,
जब तक मैं डाल पर सजा हूँ।।
मेरी सुंदरता और सुगंध से,
अनेकों भौंरे खिंचे चले आते हैं।
अपनी सुध-बुध खोकर वो,
मेरे उपर रात दिन मंडराते हैं।।
एक बार जब डाल से,
माली द्वारा तोड़ लिया जाउंगा।
मेरा व्यक्तित्व तब एक सौदा बन जाएगा,
मैं जिंदगी भर चैन से नहीं रह पाउंगा।।
फिर मुझे जगह जगह,
निजी फायदे के लिए घुमाया जायेगा।
मेरी सुंदरता और खुसबू का,
भरपूर फायदा उठाया जायेगा।।
किसी के जूड़े का गजरा बनूंगा,
तो कोई माला बना गले में लटकायेगा।
कोई कोठे की महफ़िल में,
मुझे कलाई में सजायेगा,
तो कोई मुझे थाली में सजाकर,
देवी देवताओं को चढ़ायेगा।।
कभी सामान्य लोगों के,
अर्थी पर सजाया जाउंगा।
तो कभी राजनेताओं के शव पर,
पुष्प चक्र बन चढ़ जाउंगा।।
कोई हाथ में लेकर मेरी सुगंध सुंघेगा,
तो कोई मेरी सुंदरता पर लुभायेगा।
इस तरह हर कोई मुझे,
अपने अपने तरह से घुमायेगा।।
मेरी कद्र तब तक रहेगी,
जब तक मैं खिला हुआ और सुगंधित हूँ।
एक बार मुरझा जाने पर,
मुझे कोई छूने भी न आयेगा।
तब किसी नाली या कुड़ेदान में,
मेरा अंतिम स्थान रह जायेगा।।
डाली पर खिले समय,
जो भौंरे रात दिन मंडराते थे,
वे अब झांकने भी न आयेंगे।
जिन्होंने पैसे के लिए,
हमें हांथों हांथ घुमाया था,
हमारे मुरझाते ही, सभी भूल जायेंगे।।
एक फूल केवल सौन्दर्य और,
खुशबू का वस्तु और साधन नहीं,
उसकी भी अपनी कुछ चाहत है।
माली इस मर्म को समझ नहीं पाता है,
इसी से कोमल फूल आहत है।।
नियति का नियम अगर,
खिलना, मंहकना और फिर मुरझाना ही है,
तो क्यों न मैं भी मुरझाने से पहले,
ऐसा सौभाग्य पाउं।
देश के लिए शहीद होने वाले,
अमर सेनानियों के अर्थी पर चढ़ू
या फिर उन शहीदों के इस सफर में,
उनके पैरों के तले आकर कुचला जाउं।।
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