"संस्कृति की अमर ज्योति"
इतिहास गवाह है कि युद्धभूमि पर पराजय किसी राष्ट्र का अंतिम अंत नहीं होती। कभी–कभी सेनाएँ हार जाती हैं, साम्राज्य टूट जाते हैं, शासन बदल जाता है — किंतु राष्ट्र तब तक वास्तव में पराजित नहीं होता, जब तक उसकी संस्कृति, उसके संस्कार एवं उसकी आध्यात्मिक चेतना जीवित रहती है।
भौतिक सत्ता अस्थायी है, परंतु सांस्कृतिक सत्ता शाश्वत। यही कारण है कि जब कोई आक्रांता हमारे भूभाग पर विजय प्राप्त करता है, तो वह सबसे पहले हमारी सांस्कृतिक जड़ों को काटने का प्रयास करता है। वह हमारे पर्वों, भाषाओं, परंपराओं एवं धार्मिक आस्थाओं को बदलना चाहता है, क्योंकि वह जानता है कि जब तक ये जीवित हैं, तब तक उस राष्ट्र की आत्मा भी जीवित है।
संस्कार हमें यह सिखाते हैं कि कठिन से कठिन समय में भी हमें अपने मूल्यों का त्याग नहीं करना चाहिए। पर्व हमें एकता, उत्साह एवं सामूहिकता का अनुभव कराते हैं। संस्कृति हमें हमारी पहचान से जोड़े रखती है, एवं धार्मिक विचार हमें मानसिक बल एवं धैर्य प्रदान करते हैं।
अतः यदि हमें अपने राष्ट्र को अमर बनाए रखना है, तो हमें अपनी संस्कृति, भाषा, साहित्य, कला, पर्व एवं परंपराओं की रक्षा करनी होगी। हमें अपने बच्चों को केवल आधुनिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से भी जोड़ना होगा। क्योंकि जब तक संस्कृति जीवित है, तब तक राष्ट्र की आत्मा भी अमर है — और अमर आत्मा कभी पराजित नहीं होती।
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