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"संगत का प्रतिबिंब"

"संगत का प्रतिबिंब"

पंकज शर्मा
मनुष्य चाहे कितना भी स्वतंत्र विचारक क्यों न हो, उसके व्यक्तित्व पर उसके आसपास के लोगों का प्रभाव अनिवार्य रूप से पड़ता है। संगत केवल समय बिताने का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी सोच, दृष्टिकोण एवं कर्मों को गढ़ने वाली एक अदृश्य मूर्ति-शाला है।

जब हम सकारात्मक, ईमानदार एवं दूरदृष्टि रखने वाले लोगों के साथ रहते हैं, तो उनकी ऊर्जा, दृष्टिकोण एवं आदतें हमें भी उन्नति की ओर प्रेरित करती हैं। इसके विपरीत, यदि संगत संकीर्ण सोच, नकारात्मकता एवं स्वार्थ से भरी हो, तो अनजाने ही हमारे विचारों की निर्मल धारा मलीन होने लगती है। यह मलीनता इतनी सूक्ष्म होती है कि हमें अपने मूल स्वरूप में आए परिवर्तन का पता भी देर से चलता है।

इसलिए, संगति का चयन उतना ही सावधानीपूर्वक होना चाहिए जितना हम अपने भोजन का करते हैं। जैसे अशुद्ध भोजन से शरीर रोगग्रस्त होता है, वैसे ही अशुद्ध संगत से विचार एवं कर्म रोगग्रस्त हो जाते हैं।

स्मरण रखें—आपका आचरण और छवि, केवल आपके कर्मों का ही नहीं, आपकी संगत का भी प्रतिबिंब है।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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