संगति का चयन: शांति की कुंजी
जीवन एक सतत प्रवाहमान धारा है, जिसमें हमारे संग चलने वाले लोग हमारे मार्ग को सुगम भी बना सकते हैं एवं विषम भी। मनुष्य का चरित्र एवं संगत, उसकी दिशा एवं गति दोनों को प्रभावित करती है। जो लोग आपके समीप रहकर छल-कपट करते हैं, चुगली एवं अपवाद के माध्यम से आपके संबंधों में दरार डालते हैं, या आपके शब्दों को विकृत रूप में दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं—वे वस्तुतः आपके जीवन-पथ के अवरोधक हैं।
ऐसे व्यक्तियों का साथ बनाए रखना, मानो स्वयं अपने हाथों से अपनी मानसिक शांति एवं आत्मसम्मान को खंडित करना है। जैसे निर्मल जल में एक बूँद विष गिरने से संपूर्ण सरोवर दूषित हो जाता है, वैसे ही छलपूर्ण संगति आपके विचारों एवं निर्णयों की पवित्रता को नष्ट कर देती है।
अतः बुद्धिमानी इसी में है कि ऐसे संबंधों से स्वयं को विनम्रता एवं दृढ़ता—दोनों के साथ मुक्त किया जाए। यह त्याग किसी कटुता से नहीं, बल्कि आत्म-संरक्षण एवं आंतरिक संतुलन की आवश्यकता से प्रेरित होना चाहिए। जब हम नकारात्मक एवं दुराचारी संगति को छोड़ते हैं, तब ही हम सच्चे, स्नेहमय एवं प्रेरणादायी संबंधों के लिए अपने जीवन में स्थान बना पाते हैं।
स्मरण रहे—संगत का परिष्कार, जीवन के शुद्धिकरण की प्रथम सीढ़ी है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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