सुख
तपा नहीं जो धूप में, नहीं जिसने भूख को देखा है,गूलर में पकवान का सुख, उसने कुछ नहीं देखा है।
चला नहीं जो जेठ दोपहरी, हो गला सूखता प्यास से,
पानी की क़ीमत न जाने, लू थपेड़ों को नहीं देखा है।
पड़े नहीं पाँवों में छाले, कभी नंगे पाँव चला नहीं हो,
दो पल विश्राम का सुख क्या, उसने तो नहीं देखा है।
भूख लगी तो पानी पीना, फिर धरती पर ही सो जाना,
पर पीड़ा में पीड़ित उनका, सुख में ख़ुश नहीं देखा है?
अ कीर्ति वर्द्धन
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