'मेंहिया बैल' का आधुनिक अवतार
सत्येन्द्र कुमार पाठक
पात्र:
जनता: हम सब
किसान: राम बाबू, भुलेटन
नेता: रामखेलावन, चालबाज नेता का पिछलग्गू
डुग्गु: छात्र नेता
पुच्चू: 6 वर्ष का बच्चा
गड़बड़: बैल
रामदुलारी: घरेलू कामकाजी महिला, भुलेटन की पत्नी
(पर्दा उठता है। मंच पर एक विशाल मॉल है, जिसके सामने रामखेलावन नेता एक चमकदार माइक पर भाषण दे रहे हैं। जनता की भीड़ में राम बाबू और भुलेटन किसान चुपचाप खड़े हैं। पास ही रामदुलारी और बच्चा पुच्चू है। एक कोने में डुग्गु नारे लगाने की तैयारी कर रहा है।)
रामखेलावन नेता: (जोर से) मेरे प्यारे भाइयों और बहनों! हम भारत को 'मेक इन इंडिया' की पटरी पर दौड़ा रहे हैं! क्या आप चाहते हैं कि आपके बच्चे किसान बनें? (जनता तालियाँ बजाती है) नहीं! हम उन्हें इंजीनियर, डॉक्टर और मैनेजर बनाएंगे!
रामबाबू किसान: (धीमी आवाज में) नेताजी, लेकिन हमारा पेट कौन भरेगा?
भुलेटन किसान: (आगे बढ़कर) हाँ नेताजी, हमारे खेत सूख रहे हैं। जानवर भूखे मर रहे हैं।
रामखेलावन नेता: (रामबाबू और भुलेटन को अनदेखा करते हुए) अब से हमारे शहर में हर जगह मॉल होंगे, वाई-फाई होगा, और पिज्जा होगा!
पुच्चू: (अपनी माँ रामदुलारी से) माँ, ये पिज्जा क्या है? क्या ये रोटी से बड़ा होता है?
रामदुलारी: (हंसते हुए) नहीं बेटा, ये रोटी नहीं, ये तो हवा से बनता है।
चालबाज नेता का पिछलग्गू: (चालबाजी से राम बाबू के पास जाकर) अरे किसान चाचा, ये नेता तो आपके लिए कुछ सोच ही नहीं रहे हैं।
रामबाबू किसान: (निराश होकर) पता है।
भुलेटन किसान: हमारा क्या होगा?
चालबाज नेता का पिछलग्गू: आप दोनों मेरा साथ दो, मैं आपको एक आंदोलन चलाकर हीरो बना दूंगा।
(डुग्गु, छात्र नेता, भीड़ के बीच में आता है।)
डुग्गु: (माइक छीनकर) भाइयों! और बहनों! हम कृषि को 'बैकफुट' पर नहीं जाने देंगे! हम 'ग्रो इन इंडिया' चाहते हैं!
(जनता डुग्गु को देखकर तालियाँ बजाती है। रामखेलावन नेता उसे देखकर भड़क जाते हैं।)
रामखेलावन नेता: (जोर से) तुम कौन हो?
डुग्गु: (नारे लगाते हुए) मैं वो हूँ जो किसानों के साथ खड़ा हूँ।
(रामबाबू किसान अपने बैल गड़बड़ को खींचते हुए मंच पर लाता है।)
रामबाबू किसान: (माइक लेकर) नेताजी, पहले यह बैल हमारा दोस्त था। यह 'मेंह' के चारों ओर घूमता था और हमारे लिए अनाज पैदा करता था।
रामखेलावन नेता: (हंसकर) अरे, यह तो 'पुराने ज़माने की बात' है। आजकल 'ट्रैक्टर' हैं, 'थ्रेशर' हैं।
भुलेटन किसान: लेकिन ट्रैक्टर और थ्रेशर हमारे लिए 'बिजली' और 'डीजल' नहीं देंगे।
रामदुलारी: और हमारे बच्चों का पेट कैसे भरेगा?
(चालबाज नेता का पिछलग्गू मौके का फायदा उठाकर भुलेटन और राम बाबू को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले जाता है।)
चालबाज नेता का पिछलग्गू: (भुलेटन और राम बाबू को फुसलाते हुए) चलो, मैं तुम दोनों को एक बहुत बड़े 'धरने' में ले चलता हूँ।
(दृश्य बदलता है। अब मंच पर एक खेत है। भुलेटन और राम बाबू ज़मीन पर बैठे हैं। पास में उनका बैल गड़बड़ खड़ा है।)
भुलेटन किसान: (हंसकर) राम बाबू, देखा! हम कहाँ आ गए?
रामबाबू किसान: हाँ, हम 'आधुनिकता' के 'मेंह' में चक्कर लगा रहे हैं।
चालबाज नेता का पिछलग्गू: (एक चमकदार कैमरा लेकर आता है) अब मैं तुम्हारी फोटो खींचता हूँ। 'धरना' का शीर्षक होना चाहिए, 'आधुनिकता के 'मेंहिया बैल'।
भुलेटन किसान: (गुस्से में) क्या मतलब?
चालबाज नेता का पिछलग्गू: तुम लोग सिर्फ 'प्रदर्शन' कर रहे हो, लेकिन कुछ कर नहीं रहे हो। तुम लोग अब 'मेंहिया बैल' बन गए हो।
(रामदुलारी मंच पर आती है, उसके हाथ में 'रोटी' और 'चावल' हैं।)
रामदुलारी: (अपने पति भुलेटन से) अरे, ये क्या? तुम लोग यहाँ बैठे हो? यहाँ तो रोटी और चावल भी नहीं हैं।
भुलेटन किसान: (निराश होकर) हाँ रामदुलारी, हम 'टैक्स' पर बात कर रहे हैं, 'थ्रेशर' पर बात कर रहे हैं, लेकिन 'किसान' पर कम ही बात कर रहे हैं।
रामबाबू किसान: (अपने बैल गड़बड़ को देखते हुए) यह तो हमारा 'गड़बड़' बैल है, जो हमारी 'अन्न' पैदा करने में मदद करता था। अब तो हम भी 'गड़बड़' ही कर रहे हैं।
(डुग्गु मंच पर आता है।)
डुग्गु: (राम बाबू और भुलेटन से) भाइयों, तुम दोनों को 'धरना' देने की जरूरत नहीं है। हमें 'नदी' और 'वृक्ष' को बचाना होगा।
रामखेलावन नेता: (मंच पर आते हुए) अरे, ये सब क्या बकवास है?
चालबाज नेता का पिछलग्गू: (रामखेलावन नेता से) सर, ये लोग 'विरासत' की बात कर रहे हैं।
रामखेलावन नेता: (जोर से) विरासत! विरासत से 'मोबाइल' नहीं मिलेगा!
रामबाबू किसान: (गुस्से में) हाँ, लेकिन विरासत से 'अन्न' मिलेगा।
पुच्चू: (मंच पर दौड़ता हुआ) पापा, क्या हम अब 'रोटी' खाएंगे?
भुलेटन किसान: (पुच्चू को गले लगाते हुए) हाँ बेटा, हम रोटी खाएंगे।
(रामखेलावन नेता, चालबाज नेता का पिछलग्गू, और अन्य लोग दुखी होकर वहाँ से चले जाते हैं।)
डुग्गु: (राम बाबू और भुलेटन से) अब हमें अपनी 'दंवनी की रस्सी' को फिर से कसना होगा।
रामबाबू किसान: (हंसते हुए) हाँ, हम 'मेंहिया बैल' नहीं बनेंगे।
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