"वैराग्य : सच्चा निर्भय पथ"
जीवन में जहाँ भोग है, वहाँ रोग छिपा है; जहाँ कुल की ऊँचाई है, वहाँ पतन का भय है। धनवान को राजा का डर है, सम्मानित को अपमान का। बलवान शत्रु से काँपता है एवं रूपवान बुढ़ापे से। विद्वान भी शास्त्र-विवादों से विचलित रहता है।
अर्थात् जो सांसारिक उपलब्धियाँ जितनी आकर्षक लगती हैं, उतनी ही अस्थिर एवं भय से ग्रस्त हैं। परंतु जब मनुष्य वैराग्य को अपनाता है, तब ही वह वास्तविक निर्भयता को प्राप्त करता है। वैराग्य हमें सिखाता है कि जो नश्वर है, उसमें आसक्ति व्यर्थ है; एवं जो शाश्वत है, वही शांति एवं साहस का स्रोत है।
मित्रों आज के युग में वैराग्य का, अर्थ जीवन त्यागना / संन्यास लेना नहीं, बल्कि मोह-ग्रस्त मानसिकता से मुक्त होना है। आधुनिक दृष्टिकोण से वैराग्य, अत्यधिक उपभोग एवं प्रतियोगिता से ऊपर उठकर संतुलन, सरलता एवं आत्मिक स्वतंत्रता को चुनना है।
इसलिए सच्चा आनंद एवं निर्भयता भोग या वैभव में नहीं, अपितु वैराग्य अर्थात निर्लिप्त था में है। यही जीवन को सार्थक एवं स्वतंत्र बनाता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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