आजमा कर छोड़ दिया
आ जमाने आजमाने ,आज माॅं ने ऐसा मोड़ दिया ।
चले थे तुम हमें आजमाने ,
तुझे आजमाकर छोड़ दिया ।।
समझे थे तुझे दृढ़ निश्चयी ,
तुमने तो केवल शोर किया ।
अंधेरे में चले थे तीर चलाने ,
तबतक माॅं ने ही भोर किया ।।
मिट गया तेरा यह तीरंदाजी ,
तुमने अनैतिक ये घोर किया ।
नहीं होना चाहिए था जो भी ,
उसी पर तुमने ये जोर दिया ।।
मुॅंह किए सब पूरब की तरफ ,
तूने मुख पश्चिम ओर किया ।
निकला था चोर स्वयं ही तू ही ,
उल्टे उन्हीं का नाम चोर दिया ।।
चले थे पतंग अंतरीक्ष पहुॅंचाने ,
कर में निज लंबी ये डोर लिया ।
बिन मसाले का डोर लिए थे ,
पतंगबाजों ने इसे तोड़ लिया ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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