जो सह न पाएं तपन किंचित,वो सदा प्रेम से वंचित
निज स्वार्थ अस्ताचल बिंदु,समता भाव सरित प्रवाह ।
त्याग समर्पण उरस्थ प्रभा,
स्पृहा मिलन दर्शन अथाह ।
पग पग कंटक अपमान दंश,
पर मुखमंडल मुस्कान संचित ।
जो सह न पाएं तपन किंचित, वो सदा प्रेम से वंचित ।।
उच्च निम्न विभेद विलोपन,
दृष्टि आरेखित प्रेयसी छवि ।
विरोध कटाक्ष निरादर सर्वत्र,
सहन अनुपमा सदृश रवि ।
वृहत्त रूप जनमानस प्रश्न,
पर उत्तर बन नीरव सिंचित ।
जो सह न पाएं तपन किंचित, वो सदा प्रेम से वंचित ।।
विष अंतर सुधा स्पंदन,
लोक हित अग्नि परीक्षा ।
नेह अमिय धार अनंत,
प्रिय चाह नैतिक अभिरक्षा ।
आलोकित कर पर जीवन,
बाती बन दिन रात अंचित।
जो सह न पाएं तपन किंचित,वो सदा प्रेम से वंचित ।।
संघर्ष बाधा पथ पर्याय,
संदेह चरित्र हाव भाव।
परंपरा मर्यादा प्रतिकूल बिंब,
परिवार समाज व्यंग्य घाव ।
शब्द स्वर द्विअर्थ व्यंजना ,
तन दमन वासनाएं मंचित ।
जो सह न पाएं तपन किंचित,वो सदा प्रेम से वंचित ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com