Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

एक महान क्रांतिकारी के साथ कर रही है कोलकाता नगर निगम अत्याचार

एक महान क्रांतिकारी के साथ कर रही है कोलकाता नगर निगम अत्याचार

डॉ राकेश कुमार आर्य
कृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि 30 अगस्त 1888 को कलकत्ता के समीप चंद्रनगर में एक बालक का जन्म हुआ। बालक का जन्म चूंकि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन हुआ था, इसलिए माता-पिता ने इस नवजात शिशु का नाम " कन्हाई लाल "नाम रखा था । पिता का स्थानांतरण बॉम्बे में होने के कारण 5 वर्ष की आयु में ही वे परिवार के साथ बॉम्बे आ गए । कन्हाई लाल ने अपनी शुरूआती पढ़ाई बॉम्बे के आर्य शिक्षा सोसाइटी स्कूल में पूरी की । इसके बाद ये वापस चंद्रनगर आ गए । यहां उन्होंने हुगली कॉलेज में प्रवेश ले लिया। नियति इसे कुछ और ही करना चाहती थी यही कारण था कि शिक्षा के साथ-साथ वह देश की स्वाधीनता की क्रांतिकारी विचारधारा के साथ भी जुड़ गए।
उन दिनों ब्रिटिश सरकार भी ऐसे क्रांतिकारी युवाओं पर विशेष नजर रखती थी। जैसे ही ब्रिटिश सरकार को उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी मिली तो उसने इनकी डिग्री रोक ली। कन्हाई लाल दत्त को चेतावनी भी दी गई, परंतु इसके बावजूद ये अंग्रेजों के खिलाफ अपनी मुहिम चलाते रहे । इनके लिए डिग्री लेना महत्वपूर्ण नहीं था, देश को आजाद करना महत्वपूर्णथा। स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात प्रोफ़ेसर चारुचंद्र राय से हुई । ये उनके विचारों से बहुत प्रभावित हुए. प्रोफ़ेसर ने चंद्रनगर में ही 'युगांतर पार्टी' नामक एक संगठन बनाया था । उन्होंने ही कन्हाई लाल को भारतीय क्रांतिकारी आंदोलनों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया ।
यह वही समय था, जब बंगाल के विभाजन को लेकर देश में संघर्ष का वातावरण बना हुआ था । बंगाल विभाजन के खिलाफ कई आंदोलन खड़े हो चुके थे । ऐसी परिस्थितियों में उन्होंने भी बंगाल विभाजन के विरुद्ध बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया । इसी के साथ ही कई स्थानों पर सबसे आगे भी रहे । उस दौरान उनकी मुलाकात देश के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों से होती है । इसी बीच कन्हाई लाल दत्त ने बन्दूक व अन्य हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी लिया । साथ ही उन्होंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम के लिए युवाओं का एक दल तैयार कर उनको लाठी व अन्य हथियारों के गुप्त प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की । कन्हाई लाल दत्त ने हथियार बनाने की कला भी सीख ली थी । बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कन्हाई लाल कलकत्ता चले गए । यहीं उनकी मुलाकात मशहूर क्रांतिकारी अरविन्द घोष के भाई बारीन्द्र घोष से हुई । बारीन्द्र क्रांतिकारी होने के साथ ही एक सिविल सर्जन भी थे ।
कन्हाई लाल उनके संगठन अनुशीलन समिति से जुड़ गए और वहीं उन्हीं के घर में रहने लगे । दिलचस्प बात यह है कि उस घर में क्रांतिकारियों के लिए हथियार व गोलाबारूद आदि भी रखे जाते थे । कन्हाई लाल दत्त यहां रहकर अंग्रेजों के विरुद्ध सक्रिय भूमिका में रहे, मानिकतुल्ला बाग के बम बनाने के कारखाने में बम बनाना सीखा तथा क्रांतिकारियों को बमों की आपूर्ति करने लगे । मुजफ्फरनगर बम अनुष्ठान (1908) के बाद से ही अंग्रेज़ों ने क्रांतिकारियों के विरुद्ध सघन अभियान छेड़ दिया था । कई दिनों की जाँच पड़ताल के बाद अंग्रेजों को क्रांतिकारियों के उस अड्डे के बारे में पता चला, जहां कन्हाई लाल दत्त रहते हुए क्रांतिकारियों की मदद कर रहे थे । इसके बाद अंग्रेजों ने अरविन्द घोष के भाई बरिन्द्र घोष व कन्हाई लाल समेत 35 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया । इन सभी को अलीपुर जेल में डालकर, अभियोग चलाया गया, जिसे इतिहास में अलीपुर षड़यंत्र का भी नाम दिया गया है । उनमें से एक नरेंद्र गोस्वामी (नरेन गोसाईं) नामक व्यक्ति को भी जेल में डाल दिया गया था, वह अंग्रेजों के कहने पर सरकारी गवाह बन गया । ऐसे में सभी क्रांतिकारियों को अपनी हर उस योजना पर पानी फिरने का डर सताने लगा, जो उन्होंने साथ मिलकर देश की स्वतंत्रता की खातिर बनायी थी । नरेंद्र के द्वारा देश से गद्दारी करने की वजह से सभी देशभक्तों में बहुत नाराजगी थी । एक बार तो मुकदमे के दौरान किसी क्रांतिकारी ने नरेंद्र को अदालत में गुप्त तरीके से एक लात मार दी थी । इसके बाद तो सरकार ने उसकी सुरक्षा के लिए दो सिपाही दे दिए थे । ऐंसी परिस्थिति में कन्हाई लाल अपने साथी महारथी सत्येन्द्र बसु के साथ मिलकर उस देशद्रोही को मारने की एक विस्मयकारी योजना बना डाली । उन्होंने निश्चय किया कि उसकी गवाही से पहले ही उसको जान से मार देंगे । अपनी योजना के तहत उन्होंने जेल के वार्डर के साथ घुलना - मिलना प्रारंभ कर दिया । इसके बाद कन्हाई लाल, जेल में ही गुप्त तरीके ( मछली और कटहल के अंदर छुपाकर लाई गई थीं ) से दो पिस्तौल पाने में सफल रहे । इन दोनों महारथियों ने जेल के अंदर ही नरेंद्र को मार गिराने की योजना रची । योजना को अंजाम देने के लिए सबसे पहले सत्येन्द्र ने बीमार पड़ने का नाटक किया और अस्पताल में भर्ती हो गए, इसके बाद कन्हाई लाल ने भी ऐसा ही किया ।
दोनों महारथियों ने किसी तरह से नरेंद्र (नरेन) को मिलने के लिए राजी कर लिया । जब नरेंद्र गोस्वामी 31 अगस्त 1908 को सत्येन्द्र से मिलने के लिए जेल की अस्पताल पहुंचा, तो दोनों ने उसको गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया । इन दोनों महारथियों ने बड़ी दिलेरी के साथ पुलिस बल के सामने इस घटना को अंजाम दिया था । इसके बाद इनको दोबारा सलाखों के पीछे धकेल दिया गया और मुकदमा प्रारंभ हुआ । 21 अक्टूबर 1908 को मुकद्दमे के दौरान इन दोनों को फांसी की सजा सुनाई गई । फैसले में ये भी फरमान जारी हुआ कि कन्हाई लाल को अपील करने की भी अनुमति नहीं होगी ।
10 नवंबर 1908 को इस महान् योद्धा को फाँसी के दिन, अंग्रेज अधिकारी और पुलिस कर्मी लेने पहुंचे तो वो गहरी नींद में सोये हुए थे । इसीलिए यह सर्वश्रुत है कि जिनके सीने में स्व का भाव जाग्रत होता है, उनमें कभी मौत का भय नहीं होता है । ऐसे में जेल कर्मचारियों ने उनको नींद से उठाया । निद्रा से उठने के बाद स्वाधीनता के महायोद्धा ने कर्मचारी से निडरता के साथ कहा कि "चलो कहां फाँसी चढ़ना है" । तदुपरांत 10 नवंबर को केवल 20 वर्षीय युवा क्रांतिकारी ने फाँसी का फंदा चूम लिया ।
अंततः महारथी श्रीयुत कन्हाई लाल दत्त को फाँसी की सजा सुनाई गई तो वो मुस्कुराने लगे अंग्रेज जेलर ने उस दिन इस महारथी से पूँछा - "तुम इतने प्रसन्न क्यों हो ?" महारथी ने जवाब दिया कि "मैं अगले जन्म की तैयारी में व्यस्त हूँ और यही मेरी प्रसन्नता का कारण है ताकि पुनः मातृभूमि की सेवा के लिए आ सकूँ । जिस दिन फाँसी हुई थी उस दिन अंग्रेज जेलर की आँखों में आँसू थे, उसने प्रोफेसर चारुचंद्र राय से कहा था कि " इस जैसे 100 क्रांतिकारी मिल जायें तो हमें ये देश छोड़ना पड़ सकता है " । विश्व में ऐंसा बहुत कम ही देखा गया है कि जब फाँसी के बाद भी मृत शरीर के चेहरे पर मुस्कुराहट हो ।
हम सभी जानते हैं कि कांग्रेसी मानसिकता की सरकारों ने हमारे क्रांतिकारियों के साथ कितनी बदसलूकी की है ? उनके साथ पूरी तरह अन्याय किया गया है और उन्हें कभी स्वाधीनता सेनानी की सुविधा नहीं दी गई हैं ।हमारा यह महान क्रांतिकारी भी कांग्रेसी और धर्मनिरपेक्ष सरकारों की इसी प्रकार की नीति का शिकार हुए हैं।
हमारे इस महान देशभक्त अमर क्रांतिकारी वीर श्री कन्हाई लाल दत्त जी के 137 वीं जयंती आगामी 30 अगस्त को मनाई जा रही है। तब सभी राष्ट्रवादियों के लिए बुरी खबर है कि उनके पैतृक घर पर स्थानीय नगर निगम के द्वारा सूचना लगाई गई है कि यह भवन जीर्ण शीर्ण अवस्था में आ गया है, इसलिए इसे तोड़कर यहां पर बहुमंजिला इमारत तैयार की जाए । जिस स्थान पर हमारे इस क्रांतिकारी की स्मृति में कोई बलिदानी स्मारक तैयार किया जाना चाहिए , वहां पर उनकी स्मृतियों के साथ अत्याचार करते हुए नगर निगम बहुमंजिला इमारत बनाने की तैयारी में है। देश के सभी राष्ट्रवादियों के लिए यह चिंता का विषय है इस पर सभी को एक मत होकर कार्य करना चाहिए। हम सबका यह राष्ट्रीय दायित्व बनता है कि प्रदेश की सरकार के द्वारा इस महान क्रांतिकारी की स्मृतियों के साथ इस प्रकार की ज्यादती न होने दें। यह इसलिए भी आवश्यक है कि इसी मकान में हमारे सामान क्रांतिकारी के वंशज आज भी निवास कर रहे हैं।
यदि नगर निगम या प्रदेश सरकार हमारे इस महान क्रांतिकारी की स्मृतियों के साथ अत्याचार करते हुए उनके इस पैतृक मकान को समाप्त करती है तो यह हम सबके लिए बहुत ही अपमानजनक स्थिति होगी। इसलिए चारों ओर से यह आवाज उठनी चाहिए कि हम अपने क्रांतिकारी के परिवार के साथ खड़े हैं। जिन लोगों ने देश की अस्मिता सम्मान और स्वाभिमान के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया, उनके प्रति हमारे भी कुछ कर्तव्य हैं। यदि सरकार अपने पवित्र दायित्व का निर्वाह करने में असफल हो रही है तो हमें उसे उसका पवित्र कर्तव्य स्मरण कराना होगा । केंद्र सरकार से भी इस प्रकार की मांग उठाई जा सकती है कि वह कोलकाता नगर निगम को ऐसी कोई भी कार्यवाही करने से रोके जो हमारे इस क्रांतिकारी की स्मृतियों के साथ अन्य कारित कर रही हो।



(लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ